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गरीब बच्चों को स्कूल में रियायत अवश्य मिले, लेकिन सक्षम लोग अपनी फीस देंगे, तभी स्कूलों को बचाए रखना संभव

पटना

कोई भी रियायत सिर्फ उन्हें मिलती है, जो जरूरतमंद हों। कोई भी रियायत सबके लिए नहीं हो सकती। प्राइवेट स्कूलों के स्टूडेंट्स में औसतन 75 फीसदी लोग उच्च, मध्यम वर्ग के होते हैं। इनमें सरकारी अधिकारी, व्यवसायी, डॉक्टर, वकील, इंजीनियर और ठेकेदारों के बच्चे भी होते हैं। इन लोगों को किसी राहत की जरूरत नहीं। यह बात प्राइवेट स्कूल्स एंड चिल्ड्रन वेलफेयर एसोसिएशन के राष्ट्रीय अध्यक्ष शमायल अहमद ने कही।

श्री अहमद ने कहा अगर ऐसे लोग भी राहत मांगेंगे, तो सवाल उठेगा, कि क्या सरकारी अधिकारी अपना वेतन नहीं लेंगे? डॉक्टर, इंजीनियर सब मुफ्त में काम करेंगे? व्यवसायी अपनी दुकान का सामान निःशुल्क देंगे?

जाहिर है, कि सबको अपना वाजिब दाम मिलेगा, तभी समाज की व्यवस्था चलेगी।

कोई भी स्कूल, अस्पताल या संस्थान तभी जीवित रह सकता है, जब उसकी अर्थव्यवस्था सुचारू तरीके से चलती रहे।

एसोसिएशन के राष्ट्रीय अध्यक्ष शमायल अहमद ने कहा कि राहत उनलोगों को जरूर मिले, जिन्हें परेशानी है। लेकिन अगर सम्पन्न लोगों को भी रियायत दिलाई गई, तो इसका बुरा प्रभाव स्कूलों की इकॉनमी पर पड़ेगा। अभी अधिकांश स्कूलों द्वारा अपनी ओर से तथा RTE के अंतर्गत गरीब बच्चों की विभिन्न रूप में मदद की जाती है। लेकिन अगर सब लोगों को रियायत दिला दी गई, तो स्कूल की अर्थव्यवस्था चौपट होगी। ऐसे में स्कूल गरीब बच्चों की मदद करने लायक भी नहीं रह जाएंगे। इसका असर स्टाफ की सैलरी और गुणवत्ता पर पड़ेगा।

इसलिए, जरूरतमंद बच्चों को रियायत अवश्य मिले, लेकिन सक्षम लोग नियमित रूप से सभी शुल्क अदा करें, ताकि गरीबों की मदद के बावजूद विद्यालयों को गंभीर संकट का शिकार न होना पड़े।

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