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पृथ्वी का उपकार भुलाया नहीं जा सकता – जीयर स्वामी

अध्यात्मिक कड़ी जनहित के लिए होता है – जीयर स्वामी

नौहट्टा

पृथ्वी के उपकार को भुलाया नहीं जा सकता। पृथ्वी हमारा पालन पोषण करती है। आवश्यक वस्तुओं को उपलब्ध करती तो पृथ्वी माता को प्रणाम करने में क्या अपराध है। उक्त बातें लक्ष्मी प्रपन्न जीयर स्वामी ने भदारा के ज्ञान यज्ञ परिसर में कहा। उन्होंने कहा कि सभी अध्यात्मिक कड़ी मानव कल्याण के लिए है। आप भगवान नहीं मानते हैं मत मानीए लेकिन निर्जन स्थान में आपको कोई जल पिला दे ठंड लग रहा हो तो आग तपा दे उसे धन्यवाद देते हैं तो क्या सूर्य अपने प्रकाश से मंगलमय करते है तो धन्यवाद के पात्र नहीं गंगा महारानी जल उपलब्ध करती है तो धन्यवाद के पात्र नहीं है? यदि उपकार के बदले आप इन्हें प्रणाम कर दिए तो कौन सा अपराध है। मानव बडा़ नहीं होता है मानवता बड़ा होता है व्यक्ति तो बड़ा होता है लेकिन व्यक्तित्व उससे भी बडा़ होता है यही कारण है कि प्रह्लाद सबसे उच्च कोटि के भक्त हैं। उन्होने कहा कि भगवान के चौदह भक्तो के नाम लेने से कलियुग में उतना ही पुण्य मिलता जो उन भक्तो को सतयुग, त्रेता, द्वापर में मिला था। उन्होंने कहा कि कलियुग में धर्म भी होगा कर्म भी होगा लेकिन शर्म नहीं होगा संस्कार नहीं होगा। पहले भवह भसुर का छाया भी एक दुसरे पर नही पडता था लेकिन आज सबकुछ हो रहा है। पहले बेटी के विदाई के समय परिजनों का छाती फट जाती थी लेकिन आज तो विदाई के समय हाथ हिलाकर टाटा बाय बाय हो रहा है। एक हाथ हिलाकर अभिवादन करना बडे़ लोगो का अपमान करना होता है लेकिन अब सब हो रहा है। हमारा संस्कृति, सभ्यता, संस्कार धर्म बिगड़ गया है। अगर ये नहीं रहता है शांति नहीं रहेगा। एक ही घर में बाप बेटा बेटी नाती हो और टीवी पर अमर्यादित अश्लीलता को देखेगा तो शर्म कहां से रहेगा संस्कार कहां से रहेगा। अगर संस्कार नहीं रहेगा तो संसाधन तो रहेगा लेकिन शांति नहीं होगी। यदि नालायक लोग अगर कुछ करता हो तो वहां उलझना नहीं चाहिए विवेक से काम लेना चाहिए। आप पापी हो या धर्मात्मा नारायण का नाम लेने पर असर तो निश्चित ही करेगा। सल्फास की गोली को जानने वाले या नहीं जानने वाले दोनो पर खा लेने के बाद समान रूप से असर करता है उसी तरह नारायण का नाम चाहे जैसे ले पाप का नाश कर देगा। हिरण्यकशिपु शत्रु समझ नारायण का नाम ले रहा था उसी समय कयाधु के गर्भ में प्रह्लाद आ गये। भगवान वराह ने जल पर पृथ्वी को स्थापित किया था इसलिए सबसे पहले भगवान् वराह की पूजा होती है। शादी विवाह में मटकोड जो होता है भगवान् की वराह की ही पूजा है।

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