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हम तो आदिकाल से क्वारेंटाईन करते हैं

मनुष्य को सूतक एवं पातक से बचना चाहिए

विदेशी संस्कृति के नादान लोग हमारे इसी सूतक को समझ नहीं पा रहे थे: श्री राम दास बापू

जिंदगी में हम कितने सही और कितने गलत हैं यह सिर्फ दो ही शख्स जानते हैं परमात्मा और अंतरात्मा: श्याम दास महाराज

न्यूज़ डेस्क

डेहरी ऑन सोन रोहतास

कोरोना संक्रमण पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए महान संत श्री पयहारी जी महाराज के शिष्य श्री राम दास बापू ने पत्रकारों को बताया कि हम तो आदिकाल से ही क्वारेंटाईन करते हैं उन्होंने कहा कि आज जब सिर पर घूमता एक वायरस हमारी मौत बन कर बैठ गया तब हम समझे कि हमें क्वॉरेंटाइन होना चाहिए मतलब हमें सूतक एवं पातक से बचना चाहिए । यह वही सूतक पातक वही है जिसका भारतीय संस्कृति में आदिकाल से पालन किया जा रहा है, जबकि विदेशी संस्कृति के नादान लोग हमारे इसी सूतक को समझ नहीं पा रहे थे ।वो जानवरों की तरह आपस में चिपकने को उतावले थे। वह समझ ही नहीं रहे थे, कि मृतक के शव में दूषित जीवाणु होते हैं। हाथ मिलाने से भी जीवाणुओं का आदान-प्रदान होता है और जब हम समझाते थे ,तो वह हमें जालिम बताने पर उतारू हो जाते । हम शवों को जलाकर नहाते रहे और वह नहाने से बचते रहे और हमें कहते रहे कि हम गलत हैं, और आज आपको कोरोना का भय यह सब समझा रहा है। उन्होंने इस संबंध में आध्यात्मिक दृष्टिकोण से बताते हुए कहा कि हमारे यहां बच्चे का जन्म होता है तो जन्म सूतक लागू करके मां बेटे को अलग कमरे में रखते हैं महीने भर तक, मतलब क्वॉरेंटाइन करते हैं। हमारे यहां कोई मृत्यु होने पर परिवार पातक में रहता है ,लगभग 12 दिन तक सबसे अलग मंदिर में पूजा पाठ भी नहीं पातक के घरों का पानी भी नहीं किया जाता। हमारे यहां शव का दाह संस्कार करते हैं

,जो लोग अंतिम यात्रा में जाते हैं ,उन्हें सबको पातक लगती है, वह अपने घर जाने से पहले नहाते हैं फिर घर में प्रवेश मिलता है। हम मल विसर्जन करते हैं तो कम से कम 3 बार साबुन से हाथ धोते हैं ,तब शुद्ध होते हैं तब तक क्वारेंटाईन रहते हैं ,बल्कि मल विसर्जन के बाद नहाते हैं तब शुद्ध मानते हैं। हम जिस व्यक्ति की मृत्यु होती है उसके उपयोग किए गए सारे रजाई गद्दे चादर तक पातक मान कर बाहर फेंक देते हैं। उन्होंने कहा कि हमने सदैव होम हवन किया लोगों को समझाया कि इससे वातावरण शुद्ध होता है । आज विश्व समझ रहा है हमने वातावरण शुद्ध करने के लिए धूप घी, और अन्य हवन सामग्री का उपयोग किया । हमने आरती को कपूर से जोड़ा हर दिन कपूर जलाने का महत्व समझाया ताकि घर के जीवाणु मर सकें। हमने वातावरण को शुद्ध करने के लिए मंदिरों में शंखनाद किए हमने मंदिरों में बड़ी-बड़ी घंटियां लगवाई जिनके ध्वनि आवर्तन से अनंत सूक्ष्म जीव स्वयं नष्ट हो जाते हैं, हमने भोजन की शुद्धता को महत्त्व दिया और उन्होंने मांस भक्षण किया हमने भोजन करने से पहले अच्छी तरह से हाथ धोए और उन्होंने चम्मच का सहारा लिया, हमने घर में पैर धोकर अंदर आने के महत्व दिया, हम थे जो सुबह से पानी से नहाते हैं कभी-कभी हल्दी या नीम डालते थे और वह कई दिन नहाते ही नहीं, हमने मेले लगा दिए कुंभ और सिंहस्थ के सिर्फ शुद्ध जल से स्नान करने के लिए, हमने अमावस्या पर नदियों में स्नान किया ,शुद्धता के लिए ताकि कोई सूतक हो तो दूर हो जाए । हमने बीमार व्यक्तियों को नीम से नहलाया हमने भोजन में हल्दी को अनिवार्य कर दिया और वह लोग अब हल्दी पर सर्च कर रहे हैं हम चंद्र और सूर्य ग्रहण के सूतक मान रहे हैं, ग्रहण में भोजन नहीं कर रहे हैं और इसे अब मेडिकल ही प्रमाणित कर रहे हैं, हम थे जो किसी को छूने से बचते थे हाथ नहीं लगाते थे और वो हाथ से हाथ चिपकाते रहे हम थे। जिन्होंने दूर से हाथ जोड़ का अभिवादन को महत्त्व दिया और वो हाथ मिलाते रहे हम तो उसको भी मनाते थे तो मंदिरों में जाकर सुंदरकांड का पाठ करते धूप दीप हवन करके वातावरण को शुद्ध करके और वह रात भर शराब पीकर ,हमने होली जलाई कपूर पान का पत्ता लॉन्ग गोबर के उपले और अन्य सामग्री सब कुछ सिर्फ वातावरण को शुद्ध करने के लिए हम नववर्ष नवरात्रि मनाएंगे 9 दिन घरों घरों में आहुतियां छोड़ी जाएगी वातावरण की शुद्धि के लिए, हम देवी पूजन के नाम पर घर में साफ सफाई करके घर को जीवाणुओं से क्वरेंटाईन करेंगे । हमने गोबर को महत्व दिया हर जगह लीपा और हजारों जीवाणुओं को नष्ट करते रहे और वो इससे घृणा करते रहे हम हैं ,जो दीपावली के घर के कोने कोने को साफ करते हैं ,चुना पोत कर जीवाणुओं को नष्ट करते हैं पूरे सलीके से विषाणु मुक्त घर बनाते हैं, और आपके यहां कई सालों तक पुताई भी नहीं होती अरे हम तो हर दिन कपड़े भी धो कर पहनते हैं और अन्य देशों में तो एक ही कपड़ा सप्ताह भर तक पहन लिए जाते हैं। हम अति सूक्ष्म विज्ञान को समझते हैं आत्मसात करते हैं और वह शरीफ कोरोना के भय को समझने को तैयार हुए। उन्होंने कहा कि हम जीवाणुओं को भी महत्व देते हैं जो हमारे शरीर पर सूक्ष्म प्रभाव डालते हैं आज हमें गौरव होना चाहिए हम ऐसी देव संस्कृति में जन्मे है ,जहां “सूतक” याने क्वॉरेंटाइन का महत्व है। यह हमारे जीवन की शैली है, हम जाहिल दकियानूसी, गवार नहीं, सुसंस्कृत समझदार अति विकसित महान संस्कृति को मानने वाले हैं आज हमें गौरव होना चाहिए कि पूरा विश्व हमारी संस्कृति को सम्मान से देख रहा है ,वह अभिवादन के लिए हाथ जोड़ रहा है और वो शव जला रहा है वो हमारा अनुसरण कर रहा है। उन्होंने कहा हमें भी भारतीय संस्कृति के महत्व को उनकी बारीकियों को और अच्छे से समझने की आवश्यकता है, क्योंकि यही जीवन शैली सर्वोत्तम सर्वश्रेष्ठ और सबसे उन्नत है। वही श्री पयहारी जी महाराज जी के शिष्य सद्गुरु परमार्थ आश्रम हनुमान मंदिर न्यू मुंबई माफा घंसोली आश्रम के महंत श्याम दास महाराज ने कहा कि भारत में लगभग 20 लाख साधु संत हैं उनमें कोरोना का एक भी पॉजिटिव नहीं है। उन्होंने कहा कि जिंदगी में हम कितने सही और कितने गलत है यह सिर्फ दो ही शख्स जानते हैं परमात्मा और अंतरात्मा। कोरोनावायरस मनुष्य को बहुत कुछ सिखा कर जाएगा उन्होंने कहा कि अभी जो समय चल रहा है यह भगवान का मानव को संदेश है कि तुम लोग पृथ्वी पर मेहमान हो मालिक नहीं।

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1 comment

Rakesh Kumar April 25, 2020 at 3:30 am

बिल्कुल सत्य है

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