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नीतीश कुमार से मुलाकात कर तेजस्वी की चाल में फंस गए जीतन राम मांझी

पटना से नीरज कुमार कि रिपोर्ट

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से मिलने के बाद जीतन राम मांझी के लिए मुश्किल बढ़ने वाली है।
पटना. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से पूर्व सीएम जीतन राम मांझी की मुलाकात के बाद राजद नेता तेजस्वी यादव ने जिस तरह से मांझी पर हमला बोला उससे ये साफ़ हो गया कि वे समझौता नहीं करने जा रहे हैं. दरअसल पिछले कुछ महीने से जीतन राम मांझी लगातार महागठबंधन में कोऑर्डिनेशन कमिटी बनाने के बहाने तेजस्वी यादव और लालू यादव पर दबाव बनाने की कोशिश कर रहे थे।यहां तक की मांझी रांची में लालू यादव से मिल चुके थे, लेकिन न तो लालू माने और न ही तेजस्वी.

मांझी से समझौता नहीं करने जा रहे तेजस्वी!

राजनीतिक जानकारों की मानें तो तेजस्वी यादव ये अच्छी तरह से समझ चुके थे कि मांझी, कुशवाहा और मुकेश सहनी के साथ रहने के बावजूद उसका फ़ायदा राजद को नहीं मिल पा रहा था. लोकसभा चुनाव में करारी हार से इस बात को और बल मिला था. यही वजह थी कि उसके बाद हुए उप चुनाव में मांझी, सहनी और कुशवाहा के दबाव के बावजूद तेजस्वी ने इन तीनों को मांग के बावजूद टिकट नहीं दी.

छोटे दलों से पीछा छुड़ाना चाहती है RJD!

जब उप चुनाव का परिणाम आया तो मांझी और सहनी के दबाव की राजनीति के तहत उम्मीदवार उतारने के बावजूद राजद को अच्छी सफलता मिली. इससे तेजस्वी यादव को और भी साफ लगने लगा कि अपने सहयोगियों से पीछा छुड़ाने का वक़्त आ गया है.

कुशवाहा की पार्टी ने नहीं खोले अपने पत्ते

लेकिन, इस दौरान तेजस्वी यादव कांग्रेस से ज़रूर बेहतर संबंध बनाने की कोशिश करते दिखे. तेजस्वी यादव ने अंदर ही अंदर ये भी तय कर लिया है कि कांग्रेस के साथ ही मिलकर चुनाव लड़ा जाए. अब जब मांझी ने तो सीएम नीतीश से मुलाक़ात कर
: तेजस्वी को मौक़ा दे दिया. सहनी भी मांझी के क़रीब होने की वजह से तेजस्वी के निशाने पर हैं, लेकिन कुशवाहा ने अपने पत्ते नही खोले हैं।

जेडीयू में मर्ज होगी मांझी की पार्टी।

वहीं मांझी के लिए अब सिवाय सीएम नीतीश की शर्तों को मानने के सिवा कोई चारा भी नहीं बचता दिख रहा है क्योंकि राजद उन्हें भाव देने के मूड में नहीं है।. कांग्रेस भी राजद से अलग होकर मांझी के साथ जाएगी इसकी उम्मीद भी बेमानी है. वहीं, नीतीश भी मांझी को एनडीए में शामिल कर सीट देंगे ये फ़िलहाल सम्भव नहीं दिखता. इसकी वजह ये मानी जा रही है कि मांझी की विश्वसनीयता अब पहले वाली नहीं रही. ख़बर तो ये भी है की माँझी अगर नीतीश के साथ आना चाहे तो उन्हें अपनी पार्टी जेडीयू में मर्ज़ करनी होगी.

जाहिर है कुल मिलाकर मांझी-नीतीश से मुलाक़ात पूर्व सीएम के लिए फ़िलहाल तो घाटे का सौदा दिखता है, लेकिन राजनीति है कब क्या हो जाए, कौन जानता है? ऐसे भी नीतीश कुमार को बिहार की सियासत में चाणक्य माना जाता है.

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