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मां दुर्गाशप्शती में 13 पाठ 700 मंत्र -सुनील कुमार

सासाराम ( रोहतास) अन्तर्राष्ट्रीय न्यायिक मानवाधिकार संरक्षण रोहतास सह दहेज मुक्त विवाह कार्यक्रम रोहतास सह प्रयाग फाउंडेशन रोहतास जिले के जिलाध्यक्ष सुनील कुमार ने नौ दिनों तक दिनारा के किशुनपुरा गांव के काली स्थान एवं ठाकुरबाड़ी देव स्थान में कोरोना 19 की संहार एवं मानव जीवन के शांति पूर्ण जिवन यापन को लेकर मां दुर्गाशप्शती की संपूर्ण पाठ किया गया। जिसमें उन्होंने बताया कि मां दुर्गाशप्शती में 13 पाठ एवं कुल 700 मंत्र है। वही पुरी ग्रंथ को पढ़ने में तीन घंटे की समय एक जगह लगता है।हिन्दू धर्म में मां दुर्गा का अपना एक खास महत्व है। नवरात्रि आते ही हर जगह मां के मंदिर सज जाते हैं और भक्त कतारों में खड़े होकर माता के दर्शन की प्रतीक्षा करते हैं। मां दुर्गा को पहाड़ावाली, शेरावाली, जगदम्बा, मां अम्बे, आदि नामों से भी जाना जाता है। माता के मंदिर पूरे भारत में बने हुए हैं। अगर आप मंदिरों की संख्या गिनने लगेंगे तो थक जायेंगे।

सरस्वती, लक्ष्मी, और पार्वती माता का ही रूप हैं और त्रिदेव की पत्नियां भी हैं। माता के बारे में हमारे पुराणों और शास्त्रों में बहुत सी कथायें हैं। देवी पूरण में देवी के रहस्यों का खुलासा होता है।

जिलाध्यक्ष सुनील कुमार ने बताया कि माता के बारे में कुछ ऐसी बातें हैं, जो उनके हर भक्त को जाननी चाहिए। हालांकि हम आपको पूरी बात तो नहीं लेकिन जरूरत की लगभग सभी बातें बता सकते हैं।

अकेले रहकर हर तरफ घूमने वाले सदाशिव ने अपने शरीर से शक्ति की रचना की, जो उनसे कभी भी अलग होने वाली नहीं थी। भगवान शिव की उस शक्ति को विकार रहित अविनाशी, बुद्धि तत्व बताया गया। उसी शक्ति को अम्बिका के नाम से जाना जाता है। इनकी 8 भुजाएं हैं और ये अनेक शस्त्र धारण करती हैं। यह कालरूप सदाशिव की पत्नी हैं इन्हें जगदम्बा के नाम से भी जाना जाता है। हिरण्याक्ष के बारे में तो जिलाध्यक्ष सुनील कुमार ने बताया कि यह अत्यंत क्रूर राक्षस था। इसके प्रकोप से धरती वासी ही नहीं स्वर्ग के देवता भी परेशान हो चुके थे। इसलिए उन्होंने मां अम्बिका की आराधना की। उन्होंने हिरण्याक्ष को उसकी सेना सहित नष्ट कर दिया, तब से उन्हें दुर्गा के नाम से भी जाना जाने लगा।
राजा दक्ष की पुत्री सती से भगवन शंकर की शादी हुई थी। एक बार एक यज्ञ में भगवन शंकर को ना बुलाये जाने पर सती क्रोधित हो गयीं और यज्ञ कुंड में कूदकर अपने प्राणों की आहुति दे दीं। इसके बाद उनके शरीर के अंग जहां-जहां गिरे, वहां शक्तिपीठों का निर्माण हो गया। बाद में सती ने हिमालयराज के यहां पार्वती के रूप में जन्म लिया और घोर तपस्या करके शिव को पति के रूप में पा लिया।
सती के दूसरे रूप को पार्वती के नाम से जाना जाता है। माता पार्वती को भी दुर्गा का स्वरूप माना जाता है, लेकिन वह दुर्गा नहीं हैं। इनके दो पुत्र गणेश और कार्तिकेय हैं।
हिरण्याक्ष की तरफ से युद्ध करने वाले मधु और कैटभ नाम के दो भाइयों का वध करने के बाद माता को इस नाम से भी पुकारा जाने लगा।भगवान शंकर की तीन पत्नियां थी। उमा उनकी तीसरी पत्नी थीं। उत्तराखंड में देवी उमा का एकमात्र मंदिर है। भगवान शंकर की चौथी पत्नी के रूप में मां काली की पूजा की जाती है। इन्होने इस धरती को भयानक राक्षसों के आतंक से मुक्त किया। काली भी देवी अम्बा की पुत्री थीं। इन्होने ही रक्तबीज नाम के भयानक दानव का वध किया था।
कात्यायन की पुत्री ने ही राम्भासुर के पुत्र महिषासुर का वध किया था, इसके बाद ही उन्हें महिषासुर मर्दिनी के नाम से जाना जाने लगा। एक अन्य कहानी के अनुसार महिषासुर के आतंक से त्रस्त सभी देवताओं ने मिलकर अपने शरीर से एक ज्योति निकाली जो एक सुन्दर कन्या के रूप में प्रकट हुई। सभी ने अपने अस्त्र-शस्त्र दिए इसके बाद ही महिषासुर का वध माता ने किया।
चंड और मुंड दो भाइयों का वध करने के बाद माता अम्बिका को ही चामुंडा के नाम से जाना जाने लगा। महिषासुर मर्दिनी को ही कई जगहों पर तुलजा भवानी के नाम से जाना जाता है। तुलजा भवानी और चामुंडा की पूजा खासतौर पर महाराष्ट्र में ज्यादा की जाती है।
इनमें से कुछ देवी अम्बा के रूप हैं तो कुछ देवी सती या मां पार्वती या राजा दक्ष की अन्य पुत्रियां हैं। इनके नाम निम्नलिखित हैं-
1.काली, 2.तारा, 3.त्रिपुरसुंदरी, 4.भुवनेश्वरी, 5.छिन्नमस्ता, 6.त्रिपुरभैरवी, 7.धूमावती, 8.बगलामुखी, 9.मातंगी और 10.कमला।

जिलाध्यक्ष सुनील कुमार ने बताया कि वाहन सिंह या शेर ही होता है। जिसमें एक कथा के अनुसार माता पार्वती भगवान शिव को पाने के लिए हजारों सालों तक तपस्या करती रहीं, इस वजह से वह काली हो गयीं। शादी हो जाने के बाद एक बार भगवान शंकर ने मजाक में उन्हें काली कह दिया तो माता पार्वती पुनः कैलाश से वापस आकर तपस्या करने लगी। एक दिन एक भूखा शेर उनके पास से गुजरा और उन्हें खाने के बारे में सोचने लगा। लेकिन उसने इंतजार करना उचित समझा। देवी की तपस्या पूरी होने पर उन्हें गोरा होने का वरदान मिला। तब से उन्हें गौरी के नाम से भी जाना जाने लगा। सिंह भी माता के साथ-साथ कई सालों तक तपस्या करता रहा, इससे माता ने प्रसन्न होकर उसे अपना वाहन बना लिया। ज्यादातर देवियों के वाहन सिंह ही हैं। दुर्गा सप्तशती में पहली शैलपुत्री,द्वितीय ब्रहम्हचारिणी, तृतीय चन्द्रघंटा, चतुर्थी कुष्मांडा,पंचम स्कन्दमाता, षष्ठी कात्यायनी,सप्तम कालरात्रि, आठवें महागौरी, नौवें सिद्धिदात्री मां के रूपों की पूजा की जाती है।जिसका हवन के साथ बुधवार को पाठ की पूर्णाहुति हुई। वही अन्ग्रहण आज दशमी तिथि को किया जायेगा। इससे देश में फैले रोगों से मुक्ति एवं मानव कल्याण शांति निमित्त मां से आराधना की गई।

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