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फूलों की खेती करने वालों के मुरझा गए चेहरे

डेहरी/रोहतास

प्रखंड के भरकुड़िया गांव में 100 बीघे में गेंदा फूलों की खेती करने वाले किसानों की जिंदगी कोरोना महामारी से बदहाल हो गई है। फूलों की खेती करने वाले किसानों के चेहरे मुरझा गया है। लॉकडाउन में किसानों को राशन, सब्जी, दवा जरूरत की चीज खरीदने के लिए पैसे के लाले पड़ गए हैं। कमाई होती थी तो परिवारों के लिए भोजन का जुगाड़ होता था। खेतों में रजनीगंधा व गेंदा की लहलहा रही फूलों की खेती सूखने लगी है। आफत में किसानों को समझ में नहीं आ रहा कि क्या करें? सभी मंदिर बंद हैं। शादी-विवाह से ले कार सजावट आदि भी बंद है।

कैसे हुई फूलों की खेती की शुरुआत
प्रखंड के पतपुरा पंचायत के भरकुड़िया गांव में कई जातियों के लोग रहते है।जिनमें करीब 50 से अधिक गेंदा फूल की खेती कर जीवन यापन करते हैं। गांव के वृंदा भगत ने सबसे पहले 5 वर्ष पूर्व गेंदा फूल की खेती शुरु की। गांव के किसानों को लगा कि अनाज की खेती छोड़ फूल की खेती लाभदायक नहीं होगी। फूलों की खेती में कम लागत के साथ मुनाफा देख कईलोग फूल की खेती शुरू किए। देखते-देखते गांव के हरिद्वार सिंह, पंकज पांडेय, प्रेमचंद सिंह, समेत करीब 50 से अधिक किसानों ने धान-गेहूं की खेती के साथ फूलों की खेती करने लगे हैं।
कैसे होती है गेंदा फूलों की खेती
किसान बताते हैं कि गेंदा फूल की खेती के लिए कोलकाता से गाछ मंगायी जाती है। गाछ की कीमत 300 रुपए में एक हजार मिलते हैं। पहले खेत की जुताई कर एक कट्ठा में एक हजार गाछ लगाया जाता है। कुछ दिनों बाद खाद और दवा का छिड़काव किया जाता है। तथा समय-समय पर पटवन भी आवश्यक होता है। तत्पश्चात 45 दिनों के अंदर फुल पूरी तरह से खिल कर तैयार हो जाते हैं। फूल पूरी तरह से तैयार होने के बाद उसे तोड़कर घर ले जाते हैं।

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