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बलि देने के बाद भी जीवीत रहते है बकरे

*जहाँ अक्षत मात्र से दी बकरे की बलि*
रमेश कुमार पाण्डेय (सासाराम,रोहतास)

कैमूर जिले में मां मुंडेश्वरी का एक अनोखा मंदिर है।जहां नवरात्रि के मौके पर बकरे की बलि दी जाती है लेकिन उसकी मौत नहीं होती।भारत के सबसे प्राचीन मंदिरों में से एक मां मुंडेश्वरी का मंदिर जिले के भगवानपुर अंचल में कैमूर पर्वतश्रेणी की पंवरा पहाड़ी की 608 फीट ऊंचाई पर स्थित है।माना जाता है की ये मंदिर मां का सबसे पुराना मंदिर है।

108 ईसवी में बना था मंदिर

ये मंदिर बहुत प्राचीन है।कहा जाता है कि इस मंदिर का निर्माण 108 ईस्वी में हुआ था।हालांकि इस मंदिर के निर्माण को लेकर बहुत सारी मान्यताएं है।लेकिन मंदिर में लगे भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण के सूचनापट्ट से यह जानकारी मिलती है कि यह मंदिर 635 ईसवी से पूर्व अस्तित्व में था।

मंदिर परिसर में मौजूद शिलालेखों से इसकी ऐतिहासिकता सिद्ध होती है।इस मंदिर का उल्लेख प्रसिद्ध पुरातत्वविद कनिंघम की पुस्तक में भी है।स्थानीय सूत्रों के अनुसार इस मंदिर का पता तब चला,जब कुछ गड़रिये पहाड़ी के ऊपर गए और मंदिर के स्वरूप को देखा।यह मंदिर अष्टकोणीय है।मंदिर में मां मुंडेश्वरी की एक मूर्ति है और मूर्ति के सामने मुख्य द्वार की ओर एक प्राचीन शिवलिंग है।

वैसे तो देवी मां के हर शक्तिपीठ की अपनी एक अलग पहचान है।मगर मां मुंडेश्वरी के मंदिर में कुछ ऐसा घटित होता है जिस पर किसी को सहज ही विश्वास नहीं होता हैं।

प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार मंदिर में बकरे की बलि की प्रक्रिया बहुत अनूठी है।कहा जाता है की मंदिर परिसर में बकरे की बलि नहीं दी जाती है।यहां बकरे को देवी के सामने लाया जाता है,जिस पर पुरोहित मंत्र वाले चावल छिड़कता है।जिससे वह बेहोश हो जाता है, फिर होश में आने के बाद उसे बाहर छोड़ दिया जाता है।

कैसे पहुंचे

मुंडेश्वरी धाम पहुंचने के लिए मंदिर के सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन भभुआ रोड (मोहनिया),जो गया-मुगलसराय रेलखंड पर स्थित है। मंदिर स्टेशन से करीब 25 किलोमीटर दूरी पर स्थित है।मोहनिया से सड़क मार्ग से आप आसानी से मुंडेश्वरी धाम पहुंच सकते हैं।पहले मंदिर तक पहुंचने का रास्ता बहुत कठिन था।लेकिन अब पहाड़ी के शिखर पर स्थित मंदिर तक पहुंचने के लिए पहाड़ को काट कर सीढ़ियां व रेलिंग युक्त सड़क बनाई गई है।सड़क से कार,जीप या बाइक से पहाड़ के ऊपर मंदिर तक पहुंचा जा सकता है।

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