कोरोना वायरस जैसी वैश्विक महामारी को मात देने के लिए संपूर्ण भारत में लॉकडाउन है । लोग घरों में रहकर इस बीमारी से लड़ रहे हैं । वहीं पुलिस कर्मी, स्वास्थ्यकर्मी, सफाईकर्मी जैसे तमाम जरूरी सेवाओं से जुड़े कर्मी हैं जो अपनी जान जोखिम में डालकर अपने दायित्व को बखूबी निवर्हन कर रहे हैं । इसलिए इन्हें कोरोना वॉरियर्स नाम दिया गया है । पूरे देश से तस्वीरें आई, जहां लोगो ने इन सभी कोरोना वॉरियर्स पर ताली, थाली और पुष्प वर्षा कर उनका सम्मान किया, हम ये नही कह रहे कि ये लोग इसके हकदार नही हैं। लेकिन सवाल ये है कि,, क्या मीडियाकर्मी भी इसके हक़दार नही ?
क्या पत्रकार पंकज कुलश्रेष्ठ को इसका हक नही ??
एक दैनिक अखबार के पत्रकार की जान कोरोना वायरस से चली गई । सबसे बड़ी बात है कि कोरोना के खिलाफ युद्ध में स्वास्थ्यकर्मी, पुलिसकर्मी सफाईकर्मियों के नाम का तो सुमार पूरे जोर-शोर से हो रहा है । लेकिन वह मान सम्मान पत्रकारों को नहीं मिला जिसके वो हकदार हैं । पूरे देश में कुछ भी होता है तो लोग कहते हैं ‘मीडिया बुलाओ’, आपके जिले के बड़े पदाधिकारी हों या बड़े बिजनेसमैन या फिर कोई साधारण सा व्यक्ति किसी को कुछ भी समस्या होती है तो कहते हैं ‘मीडिया बुलाओ’, यहां तक कि किसी पुलिसकर्मी को भी अपना कोई काम निकलवाना होता है तो कहते हैं ‘मीडिया बुलाओ ।
बताते चलें कि, खबरों के लिए लोगों का इंतजार करना इस बात को दर्शाता है कि ‘मीडिया’ आज भी समाज में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं । चाहे वह सोशल डिस्टेंसिंग का मामला हो, या दिहाड़ी मजदूरों का मामला हो, या चिकित्सा सुविधाओं की बात हो, अगर मीडियाकर्मी सक्रिय नहीं होते तो सरकार का आलस और भी बढ़ गया होता । लोगों तक पल-पल की खबरें भी नहीं पहुंचती ।
डॉक्टर्स और पुलिसकर्मियों के लिए तो कई बड़े-बड़े ऐलान किए गए, सामाजिक सुरक्षा की व्यवस्था की गई, लेकिन समान रूप से जान जोखिम में डालने वाले बहुत से पत्रकारों को पूरी तनख्वाह तक नहीं मिल रही, कितने पत्रकार तो ऐसे भी हैं जिन्हें तनख्वाह भी नही मिलती, फिर भी ये समाज की सुरक्षा के लिए दिन-रात तत्पर रहते हैं । पूरी दुनिया के हक के लिए लड़ने वाला पत्रकार खुद के अधिकारों से महरूम हो जाता है । राजनेता हो या कोई बड़े पदाधिकारी,उसे किसी प्यादे की तरह उपयोग करते हैं और बाद में उसे उसके हाल पर छोड़ देते हैं ।
समाचार बता रहे हैं कि कोरोना से मरने वाले पत्रकार पंकज कुलश्रेष्ठ को उचित चिकित्सा सुविधा भी नहीं प्राप्त हो सकी । उनके जांच में देरी हुई और वेंटिलेटर भी तब मुहैया कराया गया जब उनकी हालत बहुत बिगड़ गई थी । महज 52 साल की उम्र में चल बसे पत्रकार पंकज को लोग शीघ्र भूल जाएंगे उनके लिए ऐलान का तांता नहीं लगेगा, कोई यह भी याद नहीं करेगा कि वह अपने पीछे एक वैवा पत्नी और 13 वर्षीय पुत्र छोड़ गए हैं जिनकी जिंदगी कांटो से भर जाएगी ।
अगर पत्रकारों की स्थिति देखें तो उनमें चंद सुविधाभोगी अभिजात्य हैं और बहुतायत शोषण के शिकार…
अगर चौथा खंबा इतना लचर और असहाय होगा तो कौन सा समाज बनाएंगे हम ??