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एनडीए नेताओं के लिए शराब ‘‘हिडेन सोर्स ऑफ फंड कलेक्शन’’: राजद

प्रियांशु कुमार समस्तीपुर बिहार

राष्ट्रीय जनता दल के प्रदेश प्रवक्ता चित्तरंजन गगन, मृत्युंजय तिवारी एवं एजाज अहमद ने आज राजद के प्रदेश कार्यालय मे आयोजित प्रेस कॉन्फ्रेंस को सम्बोधित करते हुए कहा कि एनडीए शासनकाल के समय से हीं एनडीए नेताओं के लिए हमेशा से शराब ‘‘हिडेन सोर्स ऑफ फंड कलेक्शन’’ रहा है। और इसी वजह से शराबबंदी के बावजूद सत्ता के संरक्षण में राज्य के अन्दर शराब का अवैध कारोबार फल फूल रहा है।
मुख्यमंत्री द्वारा शराब नीति पर समीक्षा करने की बात खानापुरी के अलावा और कुछ भी नही है चूंकि इसके पहले हुए कई-कई समीक्षा बैठकों का परिणाम भी लोग देख चुके हैं।
राजद प्रवक्ताओं ने कहा कि शराब के प्रति दोहरी नीति पर चलने वाली एनडीए की सरकार शराबबंदी के नाम पर बड़ी धूर्तता के साथ लोगों को गुमराह कर रही है। राज्य में पहली बार एनडीए सरकार के गठन के साथ हीं लोगों को शराब पीने के लिए प्रोत्साहित किया गया। राजद शासनकाल में लगाये गए शख्त पाबंदियों को उदारवादी बनाकर शराब की दूकान खोलने की खुली छूट दे दी गई। सरकारी आंकड़े के अनुसार वर्ष 2002-03 में ग्रामीण इलाके में जहाँ मात्र 779 शराब की दुकानंे थी वह वर्ष 2006-07 में बढकर 2360 यानी तीन गुना हो गया। देशी शराब की खपत 4 गुना, विदेशी शराब की खपत 5 गुना और बियर की खपत 11 गुना बढ गया। राजद शासनकाल के समय वर्ष 2002-03 में राज्य भर मे विदेशी शराब की दुकानों की कुल संख्या 3095 थी जो एनडीए शासनकाल के वर्ष 2013-14 में बढकर 5467 हो गया। देशी शराब की दुकानों को जोड़कर वैध रूप से खोले गए शराब की दुकानों की कुल संख्या लगभग 14000 पहुँच गई थी।
राज्य में शराब की खपत बढाने के लिए एनडीए सरकार द्वारा जुलाई 2007 में नयी आबकारी नीति लागू की गई। जिसके तहत सभी पंचायतों में कम से कम दो-दो शराब की दुकान खोलने का निर्णय लिया गया साथ हीं राजद शासनकाल में लगाये गए उन शर्तों जिसमे सार्वजनिक स्थानों, शैक्षणिक और धार्मिक स्थलों, स्टेशन और बस स्टैंण्डों, आवासीय परिसरों, पेट्रोल पंपों और अस्पतालों के 500 मीटर के अन्दर शराब का दूकान खोलना प्रतिबंधित था, को हटा दिया गया। साथ हीं दूकान परिसर में भी पीने की छूट दे दी गई। शराब की खपत बढाने के उद्देश्य से हाइवे और एन एच पर बार (मदिरालय) खोलने वालों को 40 प्रतिशत अनुदान की भी घोषणा की गई। शराब के प्रति सरकार की उदार नीति के खिलाफ माननीय उच्च न्यायालय पटना को हस्तक्षेप करना पड़ा और सख्त टिप्पणी करनी पड़ी तथा 31 जनवरी 2014 तक स्कूलों के नजदीक खुले शराब की दुकानों को बंद करने का आदेश देना पड़ा।
इससे हो रहे दुष्परिणामों को नजरअंदाज करते हुए तत्कालीन वित्त मंत्री सुशील कुमार मोदी गर्व से यह दावा करते थे कि उदारवादी शराब नीति के कारण राज्य का राजस्व बढ रहा है। एक्साइज ड्यूटी से 2002-03 में जहाँ 248 करोड़ रूपए आये थे वहीं 2012-13 में वह बढकर 2765 करोड़ हो गया। राज्य को टैक्स से होने वाली कुल कमाई में एक्साइज ड्यूटी का हिस्सा 2006-07 में जहाँ 10 प्रतिशत था वहीं 2012-13 में वह 18 प्रतिशत हो गया।
हिडेन फंड कलेक्शन के लिए एनडीए द्वरा बड़ी चालाकी से दूकान खोलने के नियम को बदल दिया गया। पहले परिसीमित क्षेत्र के लिए खुली बोली लगती थी, नये नियम के अनुसार आबकारी विभाग खुद अपने माध्यम से खुदरा दुकानदारों को आवंटित करने लगी और खुद थौक शराब बिक्रेता बन गया ।
सरकार के खुली शराब नीति के दुष्परिणाम को देखते हुए नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी प्रसाद यादव के नेतृत्व में सरकार के शराब नीति के खिलाफ राजद द्वारा जबरदस्त अभियान चलाया गया। मदिरालय नहीं पुस्तकालय चाहिए, शराब नहीं किताब चाहिए के नारे के साथ राज्य के सभी जिला मुख्यालयों और पटना में प्रदर्शन किया गया ।
राजद प्रवक्ताओं ने कहा कि मुख्यमंत्री जी का यह दावा बिल्कुल झूठ है कि उन्होंने शराबबंदी लागू की है। 2015 में जब महागठबंधन की सरकार बनी तो राजद के राष्ट्रीय अध्यक्ष लालू प्रसाद एवं नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी प्रसाद यादव के दबाव पर राज्य में शराबबंदी लागू किया गया। जबतक महागठबंधन की सरकार चली शराबबंदी सफल रहा पर जब एनडीए की सरकार बन गई तो शराब का अवैध कारोबार फलने फूलने लगा। शराबबंदी के नाम पर लोगों को भ्रमित करने के लिए लाखों गरीब, मजदूर और कमजोर वर्ग के लोगों को जेल में बंद कर दिया गया। आजतक एक भी बड़े माफिया की गिरफ्तारी नही हुई। जब-जब जहरीली शराब की कोई घटना घटती है चैकीदार और थानेदार पर गाज गिरा दिया जाता है। आजतक एक भी बड़े पदाधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई नहीं हुई है। जबकि मुख्यमंत्री जी ने घोषणा किया था कि जिस जिला में अवैध शराब पकड़ी जायेगी वहाँ के डीएम और एसपी के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी।
राजद प्रवक्ताओं ने कहा कि केवल नीति बनाने से नहीं होता जबतक की नियत साफ नहीं हो। शराबबंदी की हकीकत केन्द्र सरकार की एजेन्सी नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे के रिपोर्ट से स्पष्ट हो जाता है। रिपोर्ट के अनुसार 2013 में बिहार मे शराबबंदी लागू नहीं था तो 9.5 प्रतिशत लोग शराब का सेवन करते थे। और अब जबकि शराबबंदी लागू है तो 17 प्रतिशत लोग शराब का सेवन कर रहे हैं। प्रेस कॉन्फ्रेंस में कार्यालय सचिव चन्देश्वर प्रसाद सिंह, निर्भय अम्बेदकर, संजीव मिश्रा, उपेन्द्र चन्द्रवंशी सहित कई अन्य पदाधिकारी।

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