मसौढ़ी
कोरोना संक्रमण को देखते हुए मोहर्रम को लेकर पूरे देश में जुलूस पर रोक है। मदरसों, इमामबाड़ा पर मजलिसों के दौर पर भी पाबंदी है।. लेकिन सरकार द्वारा जारी कोरोना गाइडलाइन का पालन करते हुए कई जगहों पर ताजिया रखकर लोग हाय हुसैन की याद में मातम मना रहे हैं।
यह भी पढ़ें – बिहार के इस गांव में हिंदू मनाते हैं मुहर्रम, बीते 100 सालों से चली आ रही है परंपरा मुहर्रम को मुहर्रम-उलाह भी कहा जाता है। दुनिया भर के मुस्लिम समुदाय के लिए यह रमजान के बाद दूसरा सबसे पवित्र महीना माना जाता है। मोहर्रम का महीना इस्लामिक कैलेंडर का पहला महीना होता है. यह महीना शिया और सुन्नी मुस्लिम समुदाय के लोगों के लिए बेहद महत्वपूर्ण माना जाता है. इस माह के 10वें दिन आशुरा मनाया जाता है. यह इस्लाम मजहब का प्रमुख त्योहार है.देखें वीडियोबता दें कि मोहर्रम जुलूस पर रोक के बावजूद अपनी मन्नत पूरी करने के लिए कई जगहों पर लोग सामूहिक तौर पर अपने गांव, टोला और मोहल्ले में ताजिया बनाकर फातिहा पढ़ रहे हैं.बताया जाता है कि अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए और अपनी मन्नतें पूरी करने के लिए लोग ताजिया को रखकर फातिहा पढ़ते हैं।
मातम का पर्व मुहर्रम के मौके पर कोरोना को लेकर इस बार सभी मदरसा और इमामबाड़ा की गलियां सूनी पड़ी हुई हैं. शांतिपूर्ण तरीके से सभी मुस्लिम इलाकों में अपने-अपने मोहल्ले टोले में ही पर्व मना रहे हैं.मोहर्रम में शांति सुरक्षा को लेकर एहतियात बरतते हुए मसौढ़ी अनुमंडल में कुल 35 जगहों को संवेदनशील घोषित किया गया है।