रिपोर्ट:-बलराम कुमार सुपौल बिहार
मामला सुपौल जिला के त्रिवेणीगंज अनुमण्डलोय मुख्यालय क्षेत्र के जदिया थाना अंतर्गत NH-327-ई सुपौल अररिया मुख्य सड़क मार्ग किनारे स्थित करोडों की लागत से बनी-CMR,गोदाम की है।
करोड़ों की लागत से बनी CMR, गोदाम कुछ हीं वर्षों में खंडर में तब्दील होती जा रही है।
सबसे बड़ी बात ये है की CMR, गोदाम का कार्य चल रहा है।
वर्षों बीतने को चला है लेकिन ठेकेदारों द्वारा अबतक योजना बोर्ड नहीं लगाया गया है।
किस योजना से बनाया गया है।
कितने की लागत से बनाया गया है।CMR, गोदाम बनाने की तिथि क्या है।
पता हीं नहीं चलता।
ऐसे ठेकेदारों को कार्य दिया हीं क्यों जाता है की कानून को ताख पर रख कर कार्य किया जाता हो।
जबकि सरकारी नियम अनुसार कार्य आरंभ करने से पूर्व हीं योजना बोर्ड लगाया जाना चाहिए।
ताकि जनता को पता चल सके की किस योजना से कितने की लागत से बन रही है।
आखिरकार ऐसा क्यों किसकी कमी।सरकार कमी है।
प्रशासन की कमी।
या ठेकेदारों की कमी
ये बात किसे कहा जाय किससे पूछा जाय।
या सभी की मिलीभगत से ऐसे कार्य किया जाता है।
जनता सरकार से पूछती है।
ठेकेदारों द्वारा ऐसी मनमानी क्यों किया जा रहा है।
ठेकेदार अपने फायदे के लिए रुपए बचाने के लिए अपनी मनमानी कर चले जाते हैं।
भुगतना जनता को पड़ता है।
क्योंकि जनता के दिए टेक्स के रुपए से कोई भी कार्य किया जाता है।लेकिन क्या कहा जा सकता है सरकार का सिस्टम हीं गलत है।
CMR, गोदाम में जितने भी कार्य किया गया है सभी की स्थिति जर्जर बन गई है।
CMR, गोदाम के चारों तरफ़ घेरे दीवाल टूट कर गिर गए हैं।
जो कभी भी अनहोनी को दावत देती है।
CMR, गोदाम में रह रहे गार्ड भी अनहोनी का आशंका जता रही है।
घेरे हुए दीवाल में सीमेंट छड़ गिट्टी वाला पिलर होना चाहिए लेकिन एक भी पिलर ऐसा नहीं है।
सभी पिलर ईंट का बना हुआ है जो बार बार टूट कर गिर जाता है।
सुशासन बाबू जरा ठेकेदारों पर नकेल कसने का काम कीजिए जनता का दिया टेक्स का रुपया ऐसे बर्बाद होने मत दीजिए।
सुशासन बाबू जनता तो आप हीं सवाल पूछेगी।
क्योंकि जनता ने हीं आपको गद्दी पर बैठाया है।
एक तरफ सरकार कहती है की अच्छे ठेकेदारों को लाइसेंस दी जाय ताकि सही तरीके से कार्य हो सके।
लेकिन यहाँ ऐसे ठेकेदारों को लाइसेंस देकर कार्य किया जा रहा है की अपनी मनमानी से बाज नहीं आ रहे हैं।
कहीं ऐसा तो नहीं सभी की मिलीभगत से कार्य कर जनता को गुमराह किया जा रहा हो।
अब देखना लाजमी होगा की सुशासन बाबू की सरकार में ऐसे कार्य करने वाले ठेकेदारों पर कब तक कार्यवाही होती है।
या फिर मिलीभगत से बात को दबा दिया जाता है।