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पांच हजार की तनखा लेने वाले कर्मचारी बिरजू द्वारा लगाए गए 2714 पौधे बने वृक्ष, बेमिसाल हरित क्रांति का उदाहरण

प्रियांशु कुमार समस्तीपुर बिहार

राजस्थान विश्वविद्यालय में एक छोटी सी ₹5 हजार की मासिक तनख्वाह पाने वाले दीन हीन अवस्था में रहने वाले एक संविदा कर्मी बिरजू ने अपनी स्वेच्छा एवं कड़ी मेहनत से छोटे-छोटे लगभग 2714 पौधों को अपने बच्चों की तरह साज सवार कर वृक्ष बनाने का जो अद्भुत कार्य किया है वह पौधरोपण के नाम पर बरसात के मौसम में एक दो पौधों को हाथ में लेकर अखबारों में सुर्खियां बटोरने वाले एनजीओ वह ऐसे ही अन्य लोगों के लिए एक अद्भुत मिसाल है , इस बिरजू को ना अपनी फोटो छपवाने का शौक है न हीं किसी की प्रशंसा या पुरस्कार की अपेक्षा है.
दरअसल, वर्ष 2015 में जयपुर के संभागीय आयुक्त हनुमान सिंह भाटी को कुलपति का अतिरिक्त कार्यभार मिला, इसी दौरान उन्हें जोबनेर कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति का भी कार्यभार सौंपा गया, राजस्थान विश्वविद्यालय के लंबे चौड़े परिसर को किस तरह हरा-भरा बनाया जाए इसके लिए उन्होंने जोबनेर कृषि विश्वविद्यालय के विशेषज्ञों को बुलाया, वह किस तरह पौधों को लगाया जाए वह किस तरह उनका रखरखाव किया जाए का प्रशिक्षण यहां के कुछ कर्मचारियों को दिलवाया, बिरजू भी यह प्रशिक्षण लेने वाला एक संविदा कर्मी था, विश्वविद्यालय मैं लगातार कीड़ों से हो रहे वृक्षों के पतन को बचाने का प्रशिक्षण भी इस दौरान बिरजू सहित कुछ कर्मियों को दिया गया जिससे काफी हरे-भरे वृक्षों को बचाने में विश्वविद्यालय को सफलता मिली,
श्री भाटी के निर्देशों से राजस्थान विश्वविद्यालय को इन्हीं दिनों वर्षा ऋतु के दौरान विशेष किस्म के पाच हजार जामुन शहतूत आंवला, नीम ,फालसा, बेलपत्र, अशोक सहित अन्य औषधियों के पांच हजार पौधे निशुल्क उपलब्ध करवाए गए.
इस हरित क्रांति के छिपे हुए समर्पित कर्मठ ,दीन हीन अवस्था में रहने वाले विश्वविद्यालय के संविदा कर्मी बिरजू तवर ने इन पौधों को सर्वप्रथम विश्वविद्यालय स्पोर्ट्स बोर्ड के नजदीक सुनसान पड़े 50 बीघा से अधिक क्षेत्र के दो मैदानों को अपने कुछ साथियों के साथ दिन रात कड़ी मेहनत कर साफ किया, वह इन मैदानों व अन्य परिसर के क्षेत्रों में इन पौधों को लगाकर ,इन्हें नियमित रूप से पानी, खाद व कीटनाशक दवाइयों का समय पर छिड़काव कर अपने बच्चों की तरह पालना शुरू किया ,आज इन 5 हजार पौधों में से 2714 पौधे, वृक्षों के रूप में विकसित हो गए हैं ,इनमें तरह तरह के फल भी आने लगे हैं. कितने मेट्रिक टन ऑक्सीजन बिरजू के इस कार्य से विश्वविद्यालय को मिल रही है इसका अंदाज लगाना मुश्किल है

बिरजू द्वारा अपनी कड़ी मेहनत से इन पौधों को वृक्ष बनाने की प्रक्रिया में अब विश्वविद्यालय के अनेक कर्मचारी शिक्षक इसकी सहायता के लिए आगे आने लगे हैं!

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