सासाराम
व्यक्ति नहीं, समय बलवान होता है। समय अनुकूल रहने पर व्यक्ति अपने को बड़ा व बलवान महसूस करने लगता है, जबकि समय प्रतिकूल होने के साथ उसी व्यक्ति को कमजोर व असहाय होने की अनुभूति होने लगती है। प्रखंड के सतसा गांव में आयोजित ज्ञान यज्ञ महोत्सव में रविवार को प्रबचन के दौरान श्री लक्ष्मी प्रपन्न जीयर स्वामी ने यह बातें कही। कहा कि समय भी क्रिया की ²ष्टि से स्वतंत्र नहीं, बल्कि मानव द्वारा पूर्व में किए गए कर्मों के अनुसार संचालित होता है। संत संस्कृति, संस्कार व समाज की रक्षा के लिए जीता है। गीता में श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं कि तीनों लोक में मेरे लिए कोई वस्तु अप्राप्त नही है। फिर भी मैं लोक कल्याण के लिए आलस्य रहित होकर कर्म करता हूं। ज्ञानी, विद्वान व संत सभी महापुरूषों को चाहिए कि वे अपने चरित्र के माध्यम से कर्मों में आशक्त मनुष्यों को लोक कल्याण का पाठ पढ़ाए। यह सर्वोत्तम निष्काम कर्मयोग है।
स्वामी जी ने कहा कि संत का धन ज्ञान, वैराग्य, सतसंग, सद्विचार और उपासना के लिए होता है, जबकि व्यक्ति का धन सांसारिक वैभव के लिए। उन्होंने कहा कि माया दोनों पाट में बहने वाली नदी के समान है। एक तरफ समेटती है तो दूसरे तरफ विस्तार करती है। दान की चर्चा करते हुए स्वामी जी ने कहा कि ईमानदारी और मर्यादा से प्राप्त धन ही दान के योग्य होता है न कि अधर्म और अनीति से अर्जित किया हुआ धन। उपदेश सुनने तथा ज्ञान प्राप्त करने की सार्थकता तभी है, जब इसे जीवन में आत्मसात किया जाए। प्रवचन चुनकर माता-पिता का अपमान करने से सब व्यर्थ हो जाता है। ज्ञान यज्ञ में पैक्स अध्यक्ष जगदीश तिवारी, अमर तिवारी, श्रीकांत तिवारी, कन्हैया पांडेय समेत अन्य मौजूद थे