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तिलौथू के खेतों में लगे धान का पश्चिम बंगाल में होती है काफी डिमांड

तिलौथू प्रखंड के पहाड़ी इलाके में इन दिनों किसान गरमा धान की खेती कर रहे हैं. जो पूरे इलाके में चर्चा का विषय बना हुआ है. इससे किसान कम समय में अधिक मुनाफा कमा रहे हैं। ऐसे तो रोहतास जिले को धान का कटोरा कहा जाता है। यहां के किसान धान की उन्नत किस्म की पैदावार कर अपनी एक अलग पहचान बना रहे हैं. गरमा धान सामान्य धान की खेती से थोड़ी अलग है. इसमें किसान कम समय में धान की फसल की पैदावार कर दूसरी फसल भी रोप लेते हैं दरअसल गरमा धान की फसल 2 से ढ़ाई महीने के अंदर ही पूरी तरीके से पक कर तैयार हो जाती है.
मई के आखिरी दिनों में किसान गरमा धान का बीज अपने खेतों में डालते हैं और अगस्त के शुरुआती दिनों में इसकी फसल पूरी तरह पक कर तैयार हो जाती है.होती है अच्छी आमदनी । फसल कटने के बाद किसान अपने खेतों में आलू के फसल की पैदावार करना शुरू कर देते हैं. गरमा धान की मांग पश्चिम बंगाल में अधिक है क्योंकि इसका इस्तेमाल ज्यादातर चूड़ा बनाने के लिए किया जाता है. इससे किसानों को अच्छी खासी आमदनी भी हो जाती है.किसान कम समय में अधिक मुनाफा हो जाती है। किसान एक ही समय में दो फसल की पैदावार अपने खेतों में कर लेते हैं. गरमा धान की खेती कर रहे किसान ने बताया कि इसकी खेती का मकसद कम समय में अधिक मुनाफा कमाना है. क्योंकि, धान की फसल तैयार होने के बाद आलू की फसल खेतों में लगाई जाती है रोहतास जिले के तिलौथू के खेतों में लगे धान पश्चिम बंगाल में होती है काफी डिमांड ।बहरहाल गरमा धान की खेती जिले सहित अन्य राज्यों में भी काफी चर्चित है. पश्चिम बंगाल के व्यापारी इसकी खरीदारी ज्यादा करते हैं. इससे बने चूड़े की वहां काफी डिमांड है। दूसरे जिले के किसान भी इसके फायदे देखकर अब इसकी खेती शुरू कर रहे हैं.।

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