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महाशिवरात्रि शिव पार्वती के मिलन के दिन को महाशिवरात्रि मनाया जाता है—सुनील कुमार

सासाराम

आज देशभर में महाशिवरात्रि का महापर्व मनाया जा रहा है शिव भक्तों के द्वारा भगवान शिवलिंग पर जलाभिषेक कर भगवान से मन्नतें मांगा जा रहा है भगवान शिव की कहानी कुछ इस प्रकार है कि गृहस्थों के आदर्श गौरीशंकर जगत में एकमात्र शिव ही हैं जिनकी गृहस्थी परम् सुख शांति से परिपूर्ण होकर मंगलमय है । यही कारण है कि हम सभी सांसारिक गृहस्थ अपनी । गृहस्थी मे मंगल के लिए शिवजी और भगवती पार्वती कीशरण लेते हैं । कुंआरी कन्याएं मनोवांछित वर तथा सुहागिन अखंड सुहाग के लिए शिव पार्वती से जुड़े ही व्रतों को करती हैं और दाम्पत्य को आंनदित एवं घर आँगन को आलोकित करती है।
सृजन का पर्व महाशिवरात्रि का प र्व का अर्थ ही मिलना है । वरिष्ठ पत्रकार सुनील कुमार दिनारा बताते हैं कि महाशिवरात्रि शिव व पार्वती के मिलन के प्रतीक के रूप में पुरुष और प्रकृति के मिलन का महापर्व है । भगवान शिव आदि , अनादि , अजन्मे और अयोनिज होकर स्वयंभू हैं । उनकी अर्धांगिनी देवी पार्वती आद्य शक्ति हैं । महादेव और देवी पार्वती के प्राकट्य की कोई निश्चित तिथि तो नहीं है मगर इनके मिलन की तिथि महाशिवरात्रि अवश्य लोक प्रसिद्ध है । यह पवित्र रात्रि सृजन का प्रतीक है । शिव सिखाते हैं गृहस्थी सृजन से , मिलन से , पर्व से महकती है ।
योगी से गृहस्थ हुए शिव शंकर आदि गुरु हैं । वे योगी हैं मगर गृहस्थी की महिमा को जानते और मानते हैं । इसीलिए लोक कल्याण के निमित्त देवताओं का मान रखने के लिए वे योगी से गृहस्थ बन जाने की लीला करते हैं । वे दुराचारी दैत्य तारकासुर का वध करने के लिए अपेक्षित पुत्र हेतु पार्वतीजी से विवाह रचाते हैं । और स्कंद के जन्मदाता बनकर गृहस्थी को सार्थक करते हैं । महादेव सिखाते हैं कि धर्म , अर्थ व काम तीनों पुरुषार्थ की सिद्धि केवल गृहस्थ के लिए ही सम्भव होती है , अतः वे भी गृहस्थ हो जाते है तप और त्याग की गृहलक्ष्मी पार्वती का एक नाम उमा है जिसका संस्कृत में अर्थ है ‘ अरी ! तपस्या मत कर । ‘ शिवप्राप्ति के कठिन तप से मां उन्हें ‘ उमा ‘ कहकर रोकती थीं । मगर पार्वती तप का पर्याय बनीं । देवी का त्याग गृहस्थी स्वीकारने वाली सभी स्त्रियों के लिए प्रेरक है । प्रेमी प्रभु की प्राप्ति के लिए ‘ राजकुमारी ‘ पार्वती राजसी सुखों का त्यागकर शिव के साथ गुफा में रहना स्वीकार करती देवी सिखाती हैं कि असल सुख भौतिक साधनों में नहीं दाम्पत्य की मधुरता में है । परस्पर त्याग और तप ,श्रम ,सहयोग से ही यह फलता – फूलता है ।
दाम्पत्य का सत्संग शं कर – पार्वती की गृहस्थी की सबसे बड़ी विशेषता है कि उन्हें जब भी अवकाश मिलता है , दोनों अपने एकांत को सत्संग से सजा लेते हैं । शिव – पार्वती सदैव पुराणों की कथाएं और जीवन के गूढ़ प्रश्नों पर परस्पर चर्चा किया करते हैं । महाभारत के अनुशासन पर्व में 20 से अधिक अध्यायों में इसी तरह का ज्ञान – संवाद है । इसी चिर सान्निध्य में ‘ अर्धनारीश्वर ‘ की कल्पना भी साकार होती है । ये देव दम्पती हमें प्रेरणा देता है कि हम भी फुर्सत के पलों को शिकायतों के बजाय सत्संग से जगमग करें तो दाम्पत्य बंधन दृढ़ होगा ।
कामनारहित और आशुतोष पति शं करजी ने अपनी तपस्या में विघ्न उत्पन्न करने वाले कामदेव को भस्म कर दिया था । पुराणों में उन्हें इसीलिए ‘ कामारि ‘ या ‘ कामहंता ‘ भी कहा गया है । इसका अर्थ है शिवजी के दाम्पत्य में काम भोग नहीं अपितु कर्तव्य है । अन्यथा गृहस्थी में अपनी गृहलक्ष्मी से कोई कामना नहीं रखते । वे हमेशा आशुतोष अर्थात बहुत कम में ही शीघ्र संतुष्ट होने वाले पति हैं । इतने कि केवल जल अर्पण मात्र से प्रसन्न हो जाते हैं । वे सिखाते हैं कि गृहस्थ को घर में कामनाओं से रहित और संतोषी होना चाहिए , न कि शिकायतो जटिलताओं को मुकुट बनाना शं करजी को जटाओं के मुकुट से मंडित और सर्प के आभूषणों से अलंकृत दर्शाया गया है । भस्म उनका अंगराग है और बाघाम्बर जैसा वस्त्र । उन्हें उपेक्षित आंकड़े का फूल व कांटेदार बिल्वपत्र प्रिय हैं । मानो जीवन की जटिलताओं और अन्यों के अप्रिय को वे सहज स्वीकारते ही नहीं , अपना शृंगार भी बना लेते हैं । वे सिखाते हैं कि उलझनों और गृहस्थी के दबाव से हमें घबराना नहीं चाहिए । जो गृहस्थ इनके दबाव में न आकर कामनाओं इनका उपयोग करने की कला सीख जाता है उसी की गृहस्थी शिव – सी मंगलमय हो पाती है ।

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