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बिहारसमस्तीपुर

एक राष्ट्र एक शिक्षा व्यवस्था के माध्यम से राष्ट्रीयता को बढ़ावा

प्रियांशु कुमार समस्तीपुर बिहार

देश के प्रत्येक राज्य में अलग- अलग शिक्षा बोर्ड है जिसकी अनदेखी संबंधित राज्य के शिक्षा विभाग के अधिकारियों द्वारा की जाती है। पाठ्यक्रम से लेकर संरचना और प्रश्नपत्र पैटर्न तक, सबकुछ एक राज्य से दूसरे राज्य में भिन्न होता है। कई राज्यों के ऐसे बोर्ड हैं जहाँ रिजल्ट में धांधली के आरोप लगते रहे हैं। वर्ष 2016 में बिहार विद्यालय परीक्षा समिति द्वारा आयोजित इंटरमीडिएट परीक्षा में हुआ घपला जगजाहिर है। कुछ छात्रों की हकीकत सार्वजनिक होने के बाद इनके परिणामों को रद्द करना पड़ा था। वर्ष 2018 में गुजरात में भी बोर्ड परीक्षा में धांधली का मामला सामने आया था। बोर्ड परीक्षाओं के लिए वन नेशन, वन बोर्ड पर विचार करना आज प्रासंगिक है। हमारी वर्तमान शिक्षा प्रणाली गैर-तकनीकी छात्र-छात्राओं की एक ऐसी फौज तैयार कर रही है जो अंततोगत्वा अपने परिवार व समाज पर बोझ बन कर रह जाती है।शिक्षा को राष्ट्र निर्माण व चरित्र निर्माण से जोड़ने की नितांत आवश्यकता है। हर इंसान को जीवन में विकास के समान मौके मिलने चाहिए। उनके साथ सामाजिक पृष्ठभूमि, लिंग, धर्म या उम्र के आधार पर भेदभाव नहीं होना चाहिए। शिक्षाविदों का मानना है कि पूरे देश के हर हिस्से में शिक्षा का एक जैसा ढांचा, पाठयक्रम, योजना और नियमावली बनायी जाए। इससे मापदंड, नीति और सुविधाओं में होने वाले भेदभाव बंद होंगे। शिक्षा के दायरे से सभी परतों को मिटाकर, एक ही परत बनाई जाए। इससे हर बच्चें को अपनी भागीदारी निभाने का समान मौका मिलेगा।पाठ्यक्रम में फर्क होने से प्रतियोगी परीक्षाओं में छात्रों को जो नुकसान उठाना पड़ रहा है, उसकी भरपाई का कोई और उपाय नजर नहीं आता। पूरे देश में एक शिक्षा बोर्ड लागू होना चाहिए, क्योंकि नई शिक्षा नीति में सभी स्कूलों में शिक्षा, विषय और परीक्षा का पैटर्न एक जैसा करने की बात कही गई है। सभी बच्चों को एक जैसी शिक्षा मुहैया कराना इस नीति के अहम उद्देश्यों में से है। बहरहाल, केंद्र और सभी राज्य सरकारों को मिल कर इसका कोई हल निकालना चाहिए, ताकि पाठ्यक्रम में अंतर होने के चलते छात्रों को इसकी बड़ी कीमत न चुकानी पड़े। विद्यालय में बैठने के उतम व्यवस्था, शिक्षकों की संख्या, प्रायोग करने के लिए संसाधन की उपलब्धता, बच्चों में शिक्षा के प्रति रुचि बढा़ने की आवश्यकता है। शिक्षा समाज के विकास के लिए महत्वपूर्ण है। एक अच्छी शिक्षा प्रणाली समाज के सभी क्षेत्रों में सुधार ला सकती है और उसे मानव संसाधनों की समृद्धि में मदद कर सकती है। भारत में शिक्षा का महत्व अत्यधिक है और इसे समाज के सभी क्षेत्रों में सुधार लाने का माध्यम माना जाता है। शिक्षा के माध्यम से समाज में समरसता, समानता और समृद्धि की स्थापना होती है। हाल ही में, एक राष्ट्र-एक शिक्षा बोर्ड की आवश्यकता को लेकर विवाद उठा है, जिसमें समान पाठ्यक्रम, परीक्षा प्रक्रिया और मानकों की माँग की जा रही है। भारत में शिक्षा का महत्व बहुत उच्च है इसलिए एक राष्ट्र-एक शिक्षा बोर्ड की माँग हो रहे हैं।
कोठारी आयोग (1964-66) देश का ऐसा पहला शिक्षा आयोग था जिसने अपनी रिपार्ट में सामाजिक बदलावों के मद्देनजर कुछ ठोस सुझाव दिए। आयोग के अनुसार समान स्कूल के नियम पर ही एक ऐसी राष्ट्रीय व्यवस्था तैयार हो सकेगी जहाँ सभी तबके के बच्चे एक साथ पढ़ेंगे। अगर ऐसा नहीं हुआ तो समाज के ताकतवर लोग सरकारी विद्यालय से भागकर निजी विद्यालय का रुख करेंगे और पूरी प्रणाली ही छिन्न-भिन्न हो जाएगी। 1970 के बाद से सरकारी विद्यालयों की गुणवत्ता में तेजी से गिरावट आने लगी। आज स्थिति यह है कि ऐसे विद्यालय गरीबों के लिए समझे जाते हैं। कोठारी आयोग द्वारा जारी सिफारिशों के बाद संसद 1968, 1986 और 1992 की शिक्षा नीतियों में समान स्कूल व्यवस्था की बात तो करती है मगर इसे लागू नहीं करती। सरकार क्यों नहीं एक ऐसे विद्यालय की योजना बनाती जो सामाजिक और आर्थिक हैसियत के अंतरों का लिहाज किए बिना सभी बच्चों के लिए खुला रहे। कोठारी आयोग के अनुसार-25% माध्यमिक स्कूलों को ‘व्यावसायिक स्कूल’ में परिवर्तित कर दिया जाए। कॉमन स्कूल सिस्टम लागू किया जाए तथा स्नातकोत्तर तक की शिक्षा मातृभाषा में दी जाए, शिक्षक की आर्थिक, सामाजिक व व्ययसायिक स्थिति सुधारने की सिफारिश की। ये बदलाव आज तक नहीं देखने को मिल रहे हैं।
प्रभाव:- 1. समरसता की स्थापना: एक राष्ट्र-एक शिक्षा बोर्ड के माध्यम से समरसता की स्थापना हो सकती है। समान पाठ्यक्रम, परीक्षा प्रक्रिया और मानकें होने से सभी छात्रों के बीच समरसता और समानता का माहौल बन सकता है।एक राष्ट्र-एक शिक्षा बोर्ड समानता को प्रोत्साहित कर सकता है, क्योंकि सभी छात्रों को एक ही पाठ्यक्रम, परीक्षा प्रक्रिया और मानकों के साथ पढ़ाया जाएगा। इससे समानता और समरसता के माहौल का संवर्धन हो सकता है। 2. पुनरावलोकन की प्रक्रिया:- एक समन्वित प्रणाली के माध्यम से, पुनरावलोकन की प्रक्रिया को सुनिश्चित किया जा सकता है। समान पाठ्यक्रम, परीक्षा प्रक्रिया और मानकें होने से पुनरावलोकन की प्रक्रिया में संवेदनशीलता और प्रणालीकरण में सुधार हो सकता है। एक राष्ट्र-एक शिक्षा बोर्ड पुनरावलोकन की प्रक्रिया को सुनिश्चित कर सकता है, क्योंकि समान पाठ्यक्रम, परीक्षा प्रक्रिया और मानकें होंगे। 3. संगठन की प्रभावीता:- एक समन्वित प्रणाली के माध्यम से, संगठन की प्रभावीता में सुधार हो सकता है। समान प्रक्रिया, पाठ्यक्रम और मानकें होने से संगठन की कार्यप्रणाली में सुधार हो सकता है। 4. प्रेरणा की प्रोत्साहन:- एक समान पाठ्यक्रम के माध्यम से छात्रों को प्रेरित किया जा सकता है क्योंकि समान परीक्षा प्रक्रिया होगी। 5. मान्यता:- एक राष्ट्र-एक शिक्षा बोर्ड से, समानता की मान्यता मिलेगी, क्योंकि समान प्रक्रिया, पाठ्यक्रम और मानकें होंगे। 6. आलंब:- एक समान पाठ्यक्रम के माध्यम से, समुदाय की सहायता में सुधार हो सकता है, क्योंकि समान परीक्षा प्रक्रिया होगी। 7. पुनरीक्षण: एक समन्वित प्रणाली के माध्यम से, पुनरीक्षण की प्रक्रिया में सुधार हो सकता है, क्योंकि समान प्रक्रिया, पाठ्यक्रम, और मानकें होंगे।
राष्ट्रीयता की भावना को विकसित करने के लिए शिक्षा की आवश्यकता है। इसीलिए प्रत्येक राष्ट्र अपने आस्तित्व बनाये रखने के लिए अपने नागरिकों में राष्ट्रीयता की भावना में विकास हेतु शिक्षा को अपना मुख्य साधन बना लेता है। स्पार्टा, जर्मनी, इटली , जापान तथा रूस एवं चीन की शिक्षा इस सम्बन्ध में ज्वलंत उदहारण है। इतिहास इस बात का साक्षी है कि प्राचीन युग में स्पार्टा तथा आधुनिक युग में नाजी, जर्मनी एवं फासिस्ट इटली में शिक्षा द्वारा ही वहाँ के नागरिकों में राष्ट्रीयता का विकास किया गया तथा आज भी रूस तथा चीन के बालकों में प्रारंम्भिक कक्षाओं से साम्यवादी भावना का विकास किया जाता है। चीन के बालकों में प्रारंभिक कक्षाओं में साम्यवादी भावना का विकास किया जाता है। कहने का तात्पर्य यह है कि तानाशाही, समाजवादी एवं जनतंत्रीय सभी प्रकार के राष्ट्र अपनी-अपनी व्यवस्था को बनाये रखने के लिए अपने-अपने नागरिकों में शिक्षा के द्वारा राष्ट्रीयता की भावना को विकसति करते हैं। राष्ट्रीय शिक्षा प्राप्त करके राष्ट्र के सभी नागरिक अपने सारे भेद-भावों को भूलकर एकता के सूत्र में बन्ध जाते हैं जिससे राष्ट्र दृढ़ तथा सबल बन जाता है। राष्ट्रीयता की शिक्षा की व्यवस्था उचित रूप से नहीं की गई तो राष्ट्र की संस्कृति विकसित नहीं होगी। राष्ट्रीयता की शिक्षा प्राप्त करके राष्ट्र का कोई व्यक्ति ऐसा अवांछनीय कार्य नहीं करता जिससे राष्ट्र की उन्नति में बाधा आये। राष्ट्रीयता की शिक्षा नागरिकों में राष्ट्र के प्रति अपार भक्ति, आज्ञा-पालन, आत्म-त्याग, कर्तव्यपरायणता तथा अनुशासन आदि गुणों को विकसति करके सभी प्रकार के भेद-बावों को भुलाकर एकता के सूत्र में बाँध देती है। इससे राष्ट्र की राजनीतिक, आर्थिक , सामाजिक तथा सांस्कृतिक आदि सभी प्रकार की उन्नति होती रहती हैं।वास्तविकता यह है कि आधुनिक युग में प्रत्येक राष्ट्र को अपना दृष्टिकोण उदार बनाना चाहिए तथा राष्ट्रीयता के व्यापक सिद्धांत को अपनाकर नागरिकों में विश्व बंधुत्व एवं विश्व नागरिकता की भावना को प्रोत्साहित करना चाहिए। इन अंतर्राष्ट्रीय भावना से विश्व में शान्ति बनी रहेगी जिससे प्रत्येक राष्ट्र उन्नति के शिखर पर चढ़ता रहेगा। राजधानी में जो शिक्षा देने के लिए व्यवस्था की गई है वही व्यवस्था सुदूर गाँव के बच्चों के लिए भी करनी चाहिए। उनकी पढा़ई में रुचि बढा़ने के लिए जमीनी स्तर पर प्रयास करने की जरूरत है। आखिर कब पढ़ेगें अमीरों, नेताओं, सरकारी कर्मचारियों के बच्चें सरकारी विद्यालय में? जब तक इन‌लोगों के बच्चें वंचितों/ शोषितों के बच्चों के साथ नहीं पढ़ेगें तब तक एक राष्ट्र एक शिक्षा व्यवस्था की कल्पना करना बेईमानी होगी।
रूपेश राय राजनीति विज्ञान विभाग ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय दरभंगा

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