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राष्ट्रीय गणित महान भारतीय गणितज्ञ रामानुजन जयंती

प्रियांशु कुमार समस्तीपुर बिहार

पन्ना .पवई:- शासकीय माध्यमिक शाला नारायणपुरा में शिक्षक सतानंद पाठक ने भारतीय गणितज्ञ श्रीनिवास रामानुजम जी की जयंती के अवसर पर उनके जीवन पर प्रकाश डालते हुए छात्र छात्राओं को बताया कि
महान गण‍ितज्ञ श्रीन‍िवास रामानुजन का जन्‍म 22 दिसंबर 1887 को कोयंबटूर के ईरोड गांव के एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था!
उनकी मां का नाम कोमलताम्‍मल और पिता का नाम श्रीनिवास अय्यंगर था! उनके जन्‍म के बाद पूरा परिवार कुंबाकोनम जाकर बस गया, जहां पिता श्रीनिवास एक कपड़े की दुकान में काम करने लगे!
शुरू में रामानुजन सामान्‍य बच्‍चों की तरह ही थे!यहां तक कि तीन साल की उम्र तक उन्‍होंने बोलना भी शुरू नहीं क‍िया था!स्‍कूल में एडमिशन हुता तो पढ़ाने का घ‍िसा-पिटा अंदाज उन्‍हें बिलकुल भी नहीं भाया!
हां, ये और बात है कि 10 साल की उम्र में उन्‍होंने प्राइमरी एग्‍जाम में पूरे जिले में टॉप किया! 15 साल की उम्र में वो ‘ए सिनॉपसिस ऑफ एलिमेंट्री रिजल्‍ट्स इन प्‍योर एंड एप्‍लाइट मैथमेटिक्‍स’ नाम की बेहद पुरानी किताब को पूरी तरह घोट कर पी गए थे. इस किताब में हजारों थियोरम थे! यह उनकी प्रतिभा का ही फल था कि उन्‍हें उन्‍हें आगे की पढ़ाई के लिए स्‍कॉलरश‍िप भी मिली!

रामानुजन का मन सिर्फ मैथ्‍स में लगता था. उन्‍होंने दूसरे सब्‍जेक्‍ट्स की ओर ध्‍यान ही नहीं दिया! नतीजतन उन्‍हें पहले गवर्मेंट कॉलेज और बाद में यूनिवर्सिटी ऑफ मद्रास की स्‍कॉलरश‍िप गंवानी पड़ी!
इन सबके बावजूद मैथ्‍स के प्रति उनका लगाव ज़रा भी कम नहीं हुआ! 1911 में इंडियन मैथमेटिकल सोसाइट के जर्नल में उनका 17 पन्‍नों का एक पेपर पब्‍लिश हुआ जो बर्नूली नंबरों पर आधारित था. 1912 में रामानुजन मद्रास पोर्ट ट्रस्‍ट में क्‍लर्क की नौकरी जरूर करने लगे थे लेकिन तब तक उनकी पहचान एक मेधावी गणितज्ञ के रूप में होने लगी थी!
इसी दौरान रामानुजन उस समय के विश्‍व प्रसिद्ध ब्रिटिश गण‍ितज्ञ जीएच हार्डी के काम के बारे में जानने लगे थे. 1913 में रामानुजन ने अपना कुछ काम पत्र के जरिए हार्डी के पास भेजा!शुरुआत में हार्डी ने उनके खतों को मजाक के तौर पर लिया, लेकिन जल्‍द ही उन्‍होंने उनकी प्रतिभा भांप ली!फिर क्‍या था हार्डी ने रामानुजन को पहले मद्रास यूनिवर्सिटी में और फिर कैंब्रिज में स्‍कॉलरशिप दिलाने में मदद की!हार्डी ने रामानुजन को अपने पास कैंब्रिज बुला लिया!
हार्डी के सानिध्‍य में रामानुजन ने खुद के 20 रिसर्च पेपर पब्‍लिश किए!
1916 में रामानुजन को कैंब्रिज से बैचलर ऑफ साइंस की डिग्री मिली और 1918 में वो रॉयल सोसाइटी ऑफ लंदन के सदस्‍य बन गए!

भारत गुलामी की जंजीरों में जकड़ा हुआ था और ऐसे समय में किसी भारतीय को रॉयल सोसाइटी की सदस्‍यता मिलना बहुत बड़ी बात थी! रॉयल सोसाइटी के पूरे इतिहास में रामानुजन कम आयु का कोई सदस्य आज तक नहीं हुआ है!
रॉयल सोसाइटी की सदस्यता के बाद वे ट्रिनीटी कॉलेज की फेलोशिप पाने वाले पहले भारतीय भी बने!
रामानुजन कड़ी मेहनत कर रहे थे! ब्रिटेन का ठंड और नमी वाला मौसम उन्‍हें सूट नहीं कर रहा था!
1917 में उन्‍हें टीबी भी हो गया. स्‍वास्‍थ्‍य में थोड़े-बहुत सुधार के बाद 1919 में उनकी हालत बहुत ज्‍यादा खराब हो गई और वो भारत लौट आए!
26 अप्रैल 1920 को 32 साल की बेहद कम उम्र में उनका देहांत हो गया! बीमारी की हालत में भी उन्‍होंने मैथ्‍स से अपना नाता नहीं तोड़ा!बेड पर लेटे-लेटे वो थियोरम लिखते रहते थे. पूछने पर कहते थे कि थ‍ियोरम सपने में आए थे!

रामानुजन के बनाए हुए ढेरों ऐसे थियोरम हैं जो आज भी किसी पहेली से कम नहीं हैं. उनका एक पुराना रजिस्‍टर 1976 में ट्रिनीटी कॉलेज की लाइब्रेरी से मिला था, जिसमें थियोरम और कई फॉर्मूले थे! इस रजिस्‍टर के थियोरम की गुत्‍थी आज तक नहीं सुलझ पाई है!इस रजिस्‍टर को रामानुजन की नोट बुक के नाम से जाना जाता है!

रामानुजन को ईश्‍वर में अपार व‍िश्‍वास था! जब उनसे गण‍ित के फॉर्मूले की उत्‍पत्ति के बारे में पूछा जाता था तो वो कहते थे कि ईष्‍ट देवी नामगिरी देवी की कृपा से उन्‍हें यह फॉर्मूला सूझा! वे कहते थे, ‘मेरे लिए गण‍ित के उस सूत्र का कोई मतलब नहीं जिससे मुझे आध्‍यात्‍मिक विचार न मिलते हों!

रामानुजन की बायोग्राफी ‘द मैन हू न्‍यू इंफिनिटी’ 1991 में पब्‍लिश हुई थी! इसी नाम से रामानुजन पर एक फिल्‍म भी बन चुकी है!इस फिल्‍म में एक्‍टर देव पटेल ने रामानुजन का किरदार निभाया है! रामानुजन आज भी न सिर्फ भारतीय बल्‍कि व‍िदेशी गण‍ितज्ञों के लिए प्रेरणास्रोत हैं!

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