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सबसे बडा रोग बन रहा है मोबाइल

मिसाइलों से भी कहीं तेज रफ़्तार है मोबाइल

संवाददाता तिलौथू प्रीती कुमारी

इस मॉडर्न जमाने में मोबाइल तो मानो जैसे मिसाइलों को भी पीछे छोड़ दिया है। ये एक ऐसा बीमारी उत्पन् हो रहा है जिससे आने वाला भविष्य और भी खतरा में पड़ सकता है। लोगों के ताकत का सबसे बडा कमजोरी बन रहा है मोबाइल। मानो जैसे मोबाइल की बिना दुनिया में रहना की कल्पना ही नहीं हो।

जैसे जैसे समय बदल रहा है वैसे वैसे खतरों और युध्दो की प्रकृति भी बदल रही है। आजकल छोटे छोटे नन्हे नन्हे परिंदे भी मोबाइल और एप्प्स का प्रभाव इतना चल रहा हैं कि लोग सोशल मीडिया पर दिन रात आँख डाल् कर बैठे तो वैसे में तो मोबाइल की मारक क्षमता बहुत ही तेजी से मिसाइल की पहुच से भी अधिक हो गई है। मोबाइल में इतना तेजी पकड़ लिया है कि लोग इसको अपने सीने से लगाकर हर वक़्त रखते हैं। एक मिनट का भी चैन नहीं होता है न् ही लोग इसको छोड़ सकते हैं। ये एक ऐसा बीमारी उत्पन् हुआ है जो आगे चलकर सभी के लिए घातक साबित होगा, क्योकि मोबाइल पर हर वक़्त रहने से या उसको अपने पास रखने से उससे निकलने वाले रेडिऐशन हमारे शरीर के साथ ही साथ आँखों पर भी बहुत बड़ा छाप छोड़ सकता है। इससे बहुत ही परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है अगर इसका सही से उपयोग नहीं किया गया तो आने वाले समय में विनाशकारी साबित हो सकता है। तो वहीं दूसरी ओर आपको बता दे की नन्हे नन्हे परिंदे भी जन्म से ही मोबाइल चलाना शुरू कर दिए हैं हलाकि बच्चों को ही दोषी नहीं ठहराया जा सकता है क्योकि बच्चों को बचपन से ही मोबाइल देकर बिगाड़ने में सबसे बडा हाथ होता है। आज कल छोटे नन्हे परिंदे रोना शुरू करते है तो उन्हें मोबाइल दे दिया जाता है जिसको लेकर अपने मस्ती में डूब जाते हैं यही कारण है कि बच्चों को अब किसी से कोई मतलब नहीं रहता है तब जाकर माता- पिता बाद में पश्चाताप करते है। आज कल जयादा से ज़्यादा जो दुर्घटना का मामला प्रकाश में आता है अक्सर यही कारण होता है क्योकि 18 वर्ष से नीचे के बच्चे भी बाइक राइडर बनने की चक्कर में मोबाइल से बात करते हुए बाइक चलाते हैं जिससे आए दिन सड़क दुर्घटना के शिकार होते रहते है। खास कर ये बड़े घरो के ही बच्चे बिगड़ते है।

आजकल मानो जैसे मोबाइल बीमारी के साथ ही साथ लोगों की कमजोरी भी बन रहा है। क्योकि लोग एक सेकंड भी दूर नहीं रह पाते है, लोग अपनी सासो को रोक सकते हैं लेकिन अपने मोबाइल को दूसरों के हाथों और छोड़ नहीं सकते हैं। डिजिटल के दुनिया में लोग इतना पानी और हवा की तरह बह रहे हैं कि लोगों को थोड़ा सा भी चैन नहीं है।

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