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मौसम का पुनः मिजाज बदला किसानों की छाती दहला

सासाराम/बिहार

रोहतास जिला में प्रत्येक प्रखंडों में बेमौसम बरसात रुक रुक कर आज भी हो रही है तथा सर्द हवाओं का सामना किसानों को भारी नुकसान होने पर मजबूर कर रहा है वही कड़कड़ाती सर्दी में हजारों लाखों किसानों का आज भी धान खेतों में सड़ रहे हैं तथा कुछ खलिहान तक पहुंचे हैं उस धान में भी अंकुर निकल आया है जो थोड़ी सी गेहूं की बुवाई की गई है उस खेतों में बीज का सड़ना भी जारी हो चुका है मौसम की मार झेल रहे किसान खुद परेशान हैं कि करे तो क्या करें प्राकृतिक ने किसानों के साथ आंख मिचौली का खेल खेल रहा है कभी तेज हवाएं तो कभी सर्दी तो कभी बरसात का सामना करते हैं इन वर्षों किसानों का नए साल मनाने का अवसर ही समाप्त हो गया नए साल में कोई भी ऐसा किसान नहीं दिखा जो उत्सव नए वर्ष को लेकर मना रहा हो सभी किसानों का छाती दहल रहा है कि पूरे साल किस तरह से परिवारों का भरण पोषण किया जाएगा किस तरह से शादी विवाह दवा या बच्चे बच्चियों की शिक्षा दीक्षा दी जाएगी कुछ समझ से किसानों से बाहर है जब भी थोड़ी सी धूप दिखती है तो सभी किसान अपने अपने ध्यान को धूप में डालकर सुखाने का प्रयास करते हैं परंतु जैसे ही आसमान में बादल देखते हैं तो किसानों की धड़कने तेज हो जाती है और पुनः धान को ढकने के लिए कार्यरत हो जाते हैं बताते चलें कि इस वर्ष किसानों के लिए भारी मात्रा में नुकसान सहना पड़ रहा है देखनी यह है कि किसानों तक बिहार सरकार की कितनी सहायता पहुंच पाती है या बिचौलिए मिलकर बीच में ही चट कर जाते हैं किसानों का माने तो किसानों तक बिहार सरकार की जब भी कोई राशि आती है तो पहुंचते-पहुंचते बहुत ही कम हो जाती है जैसे कि खाद हो बिज हो या पैक्स में खरीदारी के लिए सही कीमत हो किसी का भी उचित सुविधा किसान तक नहीं पहुंच पाता है इस वर्ष धान की सीजन में लगभग सभी किसानों ने प्लास्टिक कबर धन ढकने के लिए जिसके पास जितनी समर्थ हो है उतनी का ही प्लास्टिक खरीदकर धान की ढककर रखवाली कर रहे हैं और आस लगाए बैठे हैं कि बिहार सरकार या कोई धान की खरीदारी करने वाले आए और धान को खरीद कर किसानों की उचित मूल्य राशि देकर किसानों का दर्द समझे धान तो धान है किंतु गेहूं और चने का भी बीज खेतों में सड़ने शुरू हो चुके हैं कई किसान बताते हैं कि गेहूं की बुवाई फिर से करनी पड़ रही है और आगे क्या होगा खेती का सभी सामग्री डालकर खेती कर रहे हैं फिर भी भगवान भरोसे छोड़ चुके हैं जो करनी है उन्हीं को करनी है कई किसानों की आंखों से आंसू निकलते हुए यह शब्द निकल रहे हैं

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