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सीयूएसबी में टीबी के इलाज पर हो रहे शोध को मिली अंतर्राष्ट्रीय पहचान

टिकारी/गया

टिकारी से ओमप्रकाश की रिपोर्ट

शोध एवं शैक्षणिक उत्कृष्ता के ओर अग्रसर दक्षिण बिहार केन्द्रीय विश्वविद्यालय ने अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर एक बार फिर वैज्ञानिकों का ध्यान आकर्षित किया है। विवि के बायोइन्फरमेटिक्स विभाग के सह- प्राध्यापक डॉ० आशीष शंकर के माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरक्लोसिस पर हो रहे शोध से टीबी के बेहतर इलाज की सम्भावनाएं मिली है। जन संपर्क पदाधिकारी मो० मुदस्सीर आलम ने बताया कि डॉ० शंकर ग्रुप्स ऑफ कोइवॉल्विंग पोज़िशन्स प्रोवाइड ड्रग रेजिस्टेंस टू माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरक्लोसिस ए स्टडी यूजिंग टार्गेट्स ऑफ फर्स्ट -लाइन एंटीट्यूबरक्लोसिस ड्रग्स” विषय पर शोध कर रहे हैं उन्होंने बताया कि विवि के बायोइन्फरमेटिक्स विभाग के प्रयोगशाला में हो रहे इस शोध से माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरक्लोसिस के उत्साहवर्धक परिणाम मिलने शुरू हो गए हैं और इससे टीबी जैसे जानलेवा बीमारी का सटीक इलाज होने की आशा जगी है।
इस संबंध में विस्तृत जानकारी देते हुए डॉ० आशीष शंकर ने बताया कि माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरक्लोसिस पर हो रहे शोध में बिलकुल ही एक नई शैली अपनाई गई है। इस शोध में मुख्यतः माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरक्लोसिस के कारक बैक्टेरिया द्वारा दवा के प्रभावों को निष्क्रिय करने वाले प्रतिरोधक क्षमता को बेहतर तरीके को समझने में मदद मिल रही है। शोध से मिले डेटा के आधार पर टीबी के इलाज एवं रोकथाम के लिए ज़्यादा प्रभावशाली दवाइयों को विकसित किया जा सकता है।
डॉ० शंकर ने बताया कि उन्होंने इस शोध के आधार पर शोधपत्र (लेख) भी लिखा है जिसे अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त जर्नल ‘ एल्जेविएर ने इंटरनेशनल जर्नल ऑफ एंटीमाइक्रोबियल एजेंट्स में 4.615 इम्पैक्ट फैक्टर से साथ प्रकाशित किया है जिसे 2019 – 2020 में सोशल मीडिया पर भी काफी ध्यान आकर्षित किया।उन्होंने बताया कि टीबी पर हो रहे इस शोध की नवीनता एवं प्रासंगिता इतनी ज़्यादा है कि इसे इंटरनेशनल जर्नल ऑफ एंटीमाइक्रोबियल एजेंट्स ने मार्च 2019 के अंक में एडिटर्स चॉइस ‘ के रूप में चयन किया था जिसे जर्नल के मुख्य संपादक द्वारा अनुमोदित किया गया था। डॉ० शंकर ने बताया कि इस शोध में उनके साथ वनस्थली विद्यापीठ (राजस्थान) के बायोसाइंस विभाग के सह-प्राध्यापक डॉ० शरद वत्स सहयोग दे रहे हैं।उन्होंने बताया कि शोध को लेकर हम काफी सकारात्मक हैं और हमें यह आशा है कि इसके परिणामों से टीबी के इलाज में एक नया अध्याय जुड़ जाएगा जो देश व दुनिया के लिए काफी लाभदायक साबित होगा।

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