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सोशल मीडिया से देश की आंतरिक सुरक्षा को खतरा राजेश झा

टिकारी/गया

टिकारी से ओमप्रकाश की रिपोर्ट

मीडिया में सोशल मीडिया के बढ़ते प्रभाव के कारण आज मीडिया से ही देश की आंतरिक सुरक्षा को खतरा हो रहा है। अब समय आ गया है कि मीडिया से ज्यादा सोशल मीडिया को नियंत्रित किया जाए क्यूँकि इसके इस्तेमाल करने वाले सभी परिपक्व नहीं होते और न ही वे सुचना के आदान-प्रदान करने में ज़िम्मेवारी से उत्तरदायित्व निभाते है। अगर सोशल मीडिया के माध्यम से फैलाए जाने वाले झूठे तथ्यों पर तवरित विराम नहीं लगाया गया तो यह देश की सुरक्षा के लिए बहुत बड़ी चुनौती है और इसके दुष्परिणाम हम सबको भुगतने पर सकते हैं | ये बातें दिल्ली विश्वविद्यालय के प्राध्यापक डॉ. राजेश झा ने दक्षिण बिहार केन्द्रीय विश्वविद्यालय (सीयूएसबी) में “मीडिया संलाप एवं भारतीय सुरक्षा : सामाजिक सरोकार पर दृष्टिकोण” विषय पर आयोजित संगोष्ठी के दूसरे दिन कही।
जन संपर्क पदाधिकारी (पीआरओ) ने मो० मुदस्सीर आलम ने बताया कि विवि के जनसंचार एवं मीडिया विभाग और सामाजिक अध्ययन विभाग के तत्वाधान में आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी के दूसरे और अंतिम दिन कई विशेषज्ञों ने अपने विचार रखे और देश की आंतरिक सुरक्षा और मीडिया की भूमिका पर परिचर्चा किया | इस अवसर पर बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के पूर्व प्रोफेसर ए. के. कौल ने राष्ट्रीय सुरक्षा के दृषिटकोण में अपने निजी अनुभव को साझा किया। अपने संबोधन के दौरान उन्होंने कहा कि देश की सुरक्षा के हम आज प्रमुखता से देख रहे हैं। देश में हर व्यक्ति देश के सुरक्षा को लेकर चर्चा कर रहा है। उन्होंने संगोष्ठी के आयोजकों का धन्यवाद करते हुए कहा कि संगोष्ठी के दौरान जिस तरह से व्यवस्था पर विशेष ध्यान दिया। हमें अपने समस्याओं और मुद्दों को सभी के संग्यान में लाने के लिए ऐसी संगोष्ठियों का आयोजन होते रहना आवश्यक है। वहीँ बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के उप कुलसचिव मयंक सिंह कहा कि आज हमारे बीच राष्ट्र सुरक्षा एक बड़ा मुद्दा बन गया है लेकिन सभी को यह समझने की आवश्यकता है कि राष्ट्र सुरक्षा को केवल सीमा तक ही नहीं सीमित किया जा सकता है। हमें अपने सीमा की सुरक्षा के साथ ही आंतरिक सुरक्षा का भी बराबर ध्यान रखना जरूरी है। मीडिया को भी सीमा सुरक्षा को मुद्दा बनाने के साथ आंतरिक सुरक्षा को भी ध्यान में रखना होगा।
इस संगोष्ठी के उद्देश्य बारे में बताते हुए जनसंचार एवं मीडिया विभाग के शिक्षक डॉ. सुजीत कुमार ने कहा कि सामाजिक परिवर्तन लाने में मीडिया का योगदान बहुमूल्य है। देश में बेशक मीडिया को चौथा स्तंभ कहा जाता है लेकिन आज इसकी विश्वसनीयता पर सवाल खड़ा हो रहा है क्योंकि अब मीडिया पर शक्तिशाली लोगों का कब्जा होते जा रहा है। मीडिया को अपने विश्वसनीयता को बनाए रखने के लिए अपने दायित्वों को समझा चाहिए। आज देश में मीडिया विभिन्न विचार धारणाओं वाले लोगों को एक मंच पर ला कर समस्याओं का हल खोजने का प्रयास करना चाहिए। अगर मीडिया अपने दायित्वों को समझे तो ये समाज में परिवर्तन ला सकता है। संगोष्ठी के समापन पर मीडिया एवं जन संचार विभाग के विभागाध्यक्ष प्रोफेसर आतिश परासर ने बताया कि दो दिनों तक चली इस संगोष्ठी के दौरान हमने राष्ट्र कि सुरक्षा में मीडिया की भूमिका को समझा। हमने मीडिया के देश की सुरक्षा में विभिन्न स्तरों और आयामों को देखा। हमने इस संगोष्ठी के दौरान सुरक्षा के विभिन्न दृष्टि से समझा। संगोष्ठी के अंतिम दिन विभिन्न सत्रों की अध्यक्षता के लिए पटना विश्वविद्यालय के पत्रकारिता विभाग के पूर्व विभागाध्यक्ष वी.के. लाल, मगध विश्वविद्यालय के सामाजिक अध्ययन विभाग के विभागाध्यक्ष प्रोफेसर दिपक कुमार, बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के उप कुलसचिव मयंक सिंह और दिल्ली विश्वविद्यालय से आए डॉ. राजेश झा मौजूद रहे।
मीडिया विभाग के अध्यक्ष प्रोफेसर आतिश पराशर के नेतृत्व में डॉ० किंशुक पाठक, डॉ० सुजीत कुमार, डॉ० रवि सूर्यवंशी, डॉ० अनिंद्य देब एवं श्री नूर अली इमाम हसन ने संगोष्ठी को सफल करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया | समापन समारोह में धन्यवाद ज्ञापन करते हुए सामाजिक अध्ययन विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. अनिल कुमार ने कहा कि हम संगोष्ठी का आयोजन सफलता पूर्वक करने में काफी दिनों से लगे हुए थे और इसमें विभाग के प्राध्यापकों, शोधार्थियों एवं विद्यार्थियों की भूमिका अहम रही | उन्होंने सामाजिक अध्ययन विभाग के प्राध्यापकों डॉ० सनत कुमार शर्मा, डॉ० जितेंद्र राम, डॉ० हरेश नारायण पांडेय, डॉ० परिजात प्रधान एवं डॉ० प्रिय रंजन को सहयोग के लिए साधुवाद दिया।
ज्ञात हो कि दो दिनों तक चली इस संगोष्ठी के दौरान देश के 14 राज्यों के विभिन्न विश्वविद्यालयों से आए 90 से अधिक शोधार्थियों ने अपने शोधों को प्रस्तुत किया। इस दौरान विश्वविद्यालय के विभिन्न विभागों के विद्यार्थी और शिक्षकगण के साथ ही तमाम कर्मचारी भी उपस्थित रहे।

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