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भारतीय संस्कृति विश्व की सबसे प्राचीनतम संस्कृति-प्रोफेसर अरविंद पी जमखेदकर

टिकारी/गया

टिकारी से ओमप्रकाश की रिपोर्ट

भारत का इतिहास और हमारी संस्कृति विश्व की सबसे प्राचीनतम संस्कृति है, इसका प्रमाण पुरातत्व के अवशेषों, सिंधु घाटी सभ्यता आदि में आज भी मिलता है जो भारत के इतिहास को विश्व में गौरवशाली बनाता है। इसका सबसे बड़ा प्रमाण देश की नदियों जैसे सरस्वती या फिर पहाड़ों के नाम जैसे हिमालय आदि में मिलता है जिनके वर्णन ऐतिहासिक पुस्तकों में कई हज़ार वर्षों से एक जैसे मिलते हैं। भारत के इतिहास का वर्णन विभिन्न युगों एवं विभिन्न शासकों के काल में रहे गुरुओं की गुरुवावली में भी मिलती है चाहे आर्यन हों या द्रविड़ वंश या उनके बाद के वंशज इन सबने भारत के इतिहास को वैश्विक परिदृश्य में गौरवान्वित किया है और प्राचीन इतिहास को पढ़कर देश के महान एवं विस्तृत इतिहास को जाना और समझा सकता है।ये बातें भारतीय इतिहास अनुसंधान परिसद् के अध्यक्ष प्रोफेसर अरविंद पी. जमखेदकर ने दक्षिण बिहार केन्द्रीय विश्वविद्यालय में ‘भारतीय इतिहास पुनर्लेखन: चुनौतियाँ और सामाजिक चेतना’ विषय पर आयोजित दो-दिवसीय सेमिनार के उद्घाटन समारोह में की | उन्होंने कहा कि वर्तमान में भारतीय इतिहास पर इतिहासकारों एवं अन्य विद्वानों डरा लिखी गई पुस्तकों के साथ – साथ भारतीय घर्म ग्रंथों में भी भारतीय संस्कृति का वर्णन कई प्रसंग में किया गया है।भारतीय इतिहास के पुनर्लेखन एक तर्क- वितर्क का विषय है, ज़रूरत इस बात कि है हम अपने अतीत को अच्छे से समझें और इससे देशवासियों में चेतना जगाएँ तभी भारतीय इतिहास को सही ढंग से परिभाषित किया जा सकता है।
जन संपर्क पदाधिकारी (पीआरओ) मो० मुदस्सीर आलम ने बताया कि सेमिनार की अध्यक्षता करते हुए माननीय कुलपति प्रोफेसर हरिश्चन्द्र सिंह राठौर ने कहा कि आज के इस संगोष्ठी का विषय प्रासंगिक है और भारत के इतिहास को पुनः लिखने की आवश्यकता है।उन्होंने कहा कि पश्चिम के इतिहासकारों ने भारतीय इतिहास एवं संस्कृति को तोड़-मड़ोड़ कर बहुत ही गलत अंदाज़ में परिभाषित किया है।चाहे भारतीय संस्कृति हो या यहाँ प्राचीन काल में राज करने वाले विभिन्न वंशज इन सबको इतिहासकारों ने गंभीरता से उल्लेख नहीं किया है जिससे हम भर्मित हो जाते हैं।सत्य तो यह है कि भारतीय संस्कृति विश्व की प्राचीनतम संस्कृतियों में से एक है जिसे वैज्ञानिक दृश्टिकोण से परिभाषित किया जा चूका।वर्ष 2012-13 में विज्ञान के जर्नल ‘नेचर’ में भारत के डीएनए फिंगरप्रिंटिंग के पितामाह प्रोफेसर लालजी सिंह के शोध पर यह प्रमाणित हो गया कि समस्त भारतीयों का डीएनए एक ही है।कश्मीर से कन्याकुमारी तक, भुज से आइजोल तक हम सब भारतीयों का डीएनए एक ही है, जब हम सब एक हैं तो हमें मिलजुलकर रहना चाहिए और इतिहास को सही तौर पर पारिभाषित करना चाहिए।
समाजशास्त्रीय अध्ययन विभाग एवं ऐतिहासिक व पुरातत्व विभाग के संयुक्त तत्वाधान में विवि के विवेकानंद सभागार में आयोजित दो-दिवसीय सेमिनार में विशिष्ठ अतिथि के रूप में उपस्थित श्री स्वांत रंजन जी ने कहा कि विषय बड़ा महत्वपूर्ण एवं संवेदनशील है। श्री रंजन ने कहा कि विश्व के पश्चिम के इतिहासकारों ने भारत के लिए कहा है कि इतिहास लिखने की परम्परा ही नहीं है जो तथ्यात्मक नहीं है। हम सब जानते हैं कि कौटिलय ने अपने अर्थशाष्त्र में कहा है कि छः विद्याएँ इतिहास के अंदर आती हैं वहीँ विष्णुपुराण में भी इतिहास का ज़िक्र किया गया इसलिए यह कहना उचित नहीं होगा कि हम इतिहास नहीं लिख सकते हैं। इतिहास लिखने की परंपरा भारतीय संस्कृति में काफी प्राचीन है और इसको कथाओं के माध्यम से कहा गया है जो आम लोगों के समझ में आ जाती है।उन्होंने कहा कि इस सेमिनार के परिपेक्ष में कहना चाहूंगा कि इतिहास के पुनर्लेखन की इसलिए आवश्यकता है ताकि हम पुरानी गलतियों से कुछ सीखें और गौरवयुक्त इतिहास को आगे बढ़ाएँ।हाँ ध्यान इस बाद की ज़रूर रखनी चाहिए कि जो तथ्य और सत्य हों उनको इतिहास के रूप में लिखा जाये।
इससे पहले दो-दिवसीय सेमिनार की औपचारिक शुरुवात अतिथियों को शॉल एवं पुष्प गमले देकर किया गया।समाजशास्त्रीय अध्ययन विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ० अनिल कुमार सिंह झा ने संगोष्ठी के विषयक एवं इसकी प्रासंगिता के बारे में सभागार में उपस्थित अतिथियों, प्राध्यापकों, डेलीगेट्स (प्रतिभागियों) एवं विद्यार्थियों को रूबरू करवाया।उन्होंने कहा कि समाजशास्त्र एवं इतिहास एक दूसरे से जुड़े हुए विषय हैं क्यूंकि इतिहास का सीधा प्रभाव समाज पर पड़ता है। वहीँ ऐतिहासिक व पुरातत्व विभाग अध्यक्ष डॉ० सुधांशु कुमार झा ने भी सेमिनार के विषयक की महत्वता पर बोलते हुए इतिहास के पुर्नलेखन पर जोड़ दिया। उद्घाटन सत्र के अंत में समाजशास्त्रीय अध्ययन विभाग के सह प्राध्यापक डॉ० सनत कुमार शर्मा ने धन्यवाद ज्ञापन प्रस्तुत किया संगोष्ठी के दूसरे सत्रों में प्रतिभागी शोधार्थियों ने विशेषज्ञों के समक्ष शोधपत्र प्रस्तुत किए ! इस अवसर पर प्रॉक्टर प्रोफेसर कौशल किशोर, डीएसडब्लू प्रोफेसर आतिश पराशर के साथ – साथ समाजशास्त्रीय अध्ययन विभाग, इतिहास विभाग के प्रध्यापकगणों के साथ – साथ बड़ी संख्या में दूसरे विभागों के प्राध्यापक एवं विद्यार्थी मौजूद थे।
ज्ञात हो दो दिवसीय राष्ट्रीय सेमिनार में मुख्य वक्ता के रूप में एनसीईआरटी, नई दिल्ली से प्रो. शंकर शरण, महर्षि दयानन्द विश्वविद्यालय रोहतक से प्रो. भूपेन्द्र कुमार नागला, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के समाजशास्त्र विभाग से प्रो. अरबिन्द कुमार जोशी व इतिहास विभाग से प्रो. केशव मिश्रा, प्रो. मनीष सिन्हा व दीन दयाल उपाध्याय विश्वविद्यालय गोरखपुर से प्रो. हिमांशु चतुर्वेदी के अतिरिक्त अन्य विद्वतजन होंगे। इस राष्ट्रीय संगोष्ठी में देश के विभिन्न विश्वविद्यालयों से सौ से अधिक शिक्षक, शोध छात्र- छात्राएँ अपने शोध प्रस्तुत कर रहे हैं।

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