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मां यक्षिणी भवानी मंदिर में लगा घंटा की आवाज दूर दूर सुनाई पड़ता है—सुनील कुमार

सासाराम

रोहतास जिला के प्रखंड दिनारा के अंतर्गत भलूनी धाम मेले के क्षेत्र में द्दितीय स्थान रखने वाले भलुनीधाम स्थित मां यक्षिणी भवानी मंदिर में लगा घंटा की आवाज आज तो सिर्फ शांत वातावरण में ही आरती के समय आठ किलोमीटर दूर तक सुनाई पड़ता है। लेकिन जब पहले मेला परवान पर रहता तो हर भक्त के द्वारा बजायी गई घंटे की आवाज लगभग चार किलोमीटर दूर तक सुनाई पड़ता था।भलुनी धाम मां यक्षिणी भवानी मंदिर में द्धार पर लगे घंटा को सभी भक्तों द्वारा बजाने से पीतल के घंटा कुछ समय में ख़राब हो जाता है जिसे बदलना पड़ता है। वहीं मनौती मांगी गई पुरी होने के उपरांत भक्त के द्वारा बहुत वजनी व बडी घंटा मुख्य द्बार के सामने लगवाया जाता है लेकिन भक्तों की काफी आवक से मंदिर की घंटे की आवाज काफी दूर तक सुनाई पड़ता है। प्राचीन काल से ही घंटे की आवाज बहुत दूर तक मां के दरबार में आने वाले भक्तों को सुनाई पड़ता है। मंदिर के द्वार पर और विशेष स्थानों पर घंटी या घंटे लगाने का प्रचलन प्राचीन काल से ही रहा है। लेकिन इस घंटे या घंटी लगाने का धार्मिक और वैज्ञानिक महत्व क्या है? कभी हमने सोचा कि यह किस कारण से लगाई जाती है?इस संबंध में वरिष्ठ पत्रकार सुनील कुमार दिनारा का कहना है कि घंटियां 4 प्रकार की होती हैं : गरूड़ घंटी, द्वार घंटी, हाथ घंटी और घंटा।
गरूड़ घंटी : गरूड़ घंटी छोटी-सी होती है जिसे एक हाथ से बजाया जा सकता है।
द्वार घंटी : यह द्वार पर लटकी होती है। यह बड़ी और छोटी दोनों ही आकार की होती है।
हाथ घंटी : पीतल की ठोस एक गोल प्लेट की तरह होती है जिसको लकड़ी के एक गद्दे से ठोककर बजाते हैं।
घंटा : यह बहुत बड़ा होता है। कम से कम 5 फुट लंबा और चौड़ा। इसको बजाने के बाद आवाज कई किलोमीटर तक चली जाती है।जिसको आरती के समय सभी घंटियों को मंदिर में सुबह चार बजे बजने से श्रद्धालुओं की आस्था में चार चांद लगाने की बात भक्तों ने बताया।
मंदिर में घंटी लगाए जाने के पीछे न सिर्फ धार्मिक कारण है बल्कि वैज्ञानिक कारण भी इनकी आवाज को आधार देते हैं। वैज्ञानिकों का कहना है कि जब घंटी बजाई जाती है तो वातावरण में कंपन पैदा होता है, जो वायुमंडल के कारण काफी दूर तक जाता है।
इस कंपन का फायदा यह है कि इसके क्षेत्र में आने वाले सभी जीवाणु, विषाणु और सूक्ष्म जीव आदि नष्ट हो जाते हैं जिससे आसपास का वातावरण शुद्ध हो जाता है।
अत: जिन स्थानों पर घंटी बजने की आवाज नियमित आती है वहां का वातावरण हमेशा शुद्ध और पवित्र बना रहता है। इससे नकारात्मक शक्तियां हटती हैं। नकारात्मकता हटने से समृद्धि के द्वार खुलते हैं।
पहला कारण घंटी बजाने से देवताओं के समक्ष आपकी हाजिरी लग जाती है। मान्यता अनुसार घंटी बजाने से मंदिर में स्थापित देवी-देवताओं की मूर्तियों में चेतना जागृत होती है जिसके बाद उनकी पूजा और आराधना अधिक फलदायक और प्रभावशाली बन जाती है।
दूसरा कारण यह कि घंटी की मनमोहक एवं कर्णप्रिय ध्वनि मन-मस्तिष्क को अध्यात्म भाव की ओर ले जाने का सामर्थ्य रखती है। मन घंटी की लय से जुड़कर शांति का अनुभव करता है। मंदिर में घंटी बजाने से मानव के कई जन्मों के पाप तक नष्ट हो जाते हैं। सुबह और शाम जब भी मंदिर में पूजा या आरती होती है तो एक लय और विशेष धुन के साथ घंटियां बजाई जाती हैं जिससे वहां मौजूद लोगों को शांति और दैवीय उपस्थिति की अनुभूति होती है।
तीसरा कारण यह कि जब सृष्टि का प्रारंभ हुआ, तब जो नाद (आवाज) गूंजी थी वही आवाज घंटी बजाने पर भी आती है। घंटी उसी नाद का प्रतीक है।
उल्लेखनीय है कि यही नाद ‘ओंकार’ के उच्चारण से भी जागृत होता है। कहीं-कहीं यह भी लिखित है कि जब प्रलय आएगा उस समय भी ऐसा ही नाद गूंजेगा। मंदिर के बाहर लगी घंटी या घंटे को काल का प्रतीक भी माना गया है। घंटा की आवाज सुनाई पड़ने पर भक्तों की झूंड आस्था के समुंदर में हिलोरें खाते भक्ती श्रध्दा से झूमते हुए मां यक्षिणी भवानी को प्रसाद चढ़ाते हुए मनौती मांगी जाती है। जिसके पूरा होने पर मां के दरबार में घंटा के साथ अन्य प्रकार के मनौती सामग्री भेंट की जाती है।

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