सासाराम
रोहतास // भारतीय किसान गरीबी में ही जन्म लेते है और गरीबी के बोझ तले ही स्वर्ग सिधार जाते हैं। यह बात अक्षरश: साबित हो रही है धान के कटोरा के रूप में चर्चित इलाके में। जहां के किसानों की बदनसीबी कही नहीं जा सकती है। किसान हाड़ तोड़ मेहनत करने के बाद भी आर्थिक बदहाली से उबर नही पा रहे हैं। तंगहाली को दूर करने का प्रयास इस क्षेत्र से निर्वाचित न जनप्रतिनिधि करते हैं न प्रशासनिक पदाघिकारी। नतीजतन किसान कर्ज के बोझ को उठा नहीं पा रहे हैं। कर्ज का तोहफा अपनी भावी पीढ़ी के लिए छोड़कर चल बसते हैं।
हालांकि इस इलाके के किसानों ने उत्पादन के मामले में हरियाणा व पंजाब जैसे राज्यों को पीछे छोड़ दिया है। कोई राहत नहीं मिलने और समुचित कृषि बाजार उपलब्ध नहीं कराये जाने से इनका हाल बेहाल है। इस संबंध में किसान रामेश्वर सिंह, मिथिलेश सिंह, विपिन कुशवाहा, राजू सिंह व मनोज सिंह का कहना है कि सरकार किसानों द्वारा उत्पादित उत्पादों का समुचित समर्थन मूल्य भी दिलाने में असमर्थ है। जबकि पैक्स महज हाथी का दांत साबित हो रहा है।
किसान अपनी उपज धान व गेहूं को महाजनों के हाथों औने पौने दामों पर विक्री कर देते हैं। इस वर्ष तो मौसम के मार से किसानों को उबरने में काफी समय लगेगा। किसानों का कहना है कि इस साल धान का कोई खरीदार नहीं मिल रहा है। महज आठ सौ से एक हजार प्रति क्विटंल धानों की विक्री हो रही है। सरकारी स्तर पर धान खरीदारी के लिए कहीं क्रय केंद्र भी नहीं खुला है। सरकारी व प्रशासनिक उपेक्षा से किसान अपने को ठगा महसूस कर रहे हैं। इस संबंध में बीडीओ संजय कुमार दास का कहहना है कि किसानों के उत्पाद की खरीदारी की जाएगी। सरकारी दर पर खाद व बीज के लावा कृषि यंत्रों पर सब्सिडी सरकारी उपलब्ध करा रही है।