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उत्तर प्रदेशलखनऊ

प्रधानअध्यापक कैसे बनाए प्रेरक ब्लॉक शिक्षा मित्र और सहायक अध्यापक सरकारी आदेशों को मानने से कर रहें हैं इनकार

लखनऊ मोहनलालगंज के प्राथमिक विद्यालय कुशभिटा में तैनात सहायक अध्यापक वीरेंद्र मिश्रा अपने रसूख के आधार पर बामुस्किल विद्यालय तो आ जाते हैं पर बच्चों को पढ़ाने में आनाकानी करते रहते हैं।
प्रधानाध्यापिका रेनू त्रिपाठी ने जब अपने यहां तैनात सहायक अध्यापक को कक्षा तीन के बच्चों को सहायक अध्यापक और शिक्षा मित्र को पढ़ाने को कहा तो इतना सुनते ही सहायक अध्यापक वीरेंद्र मिश्रा अपना आपा खो बैठे और उन्होंने बच्चों को पढ़ाने से साफ मना कर दिया और प्रधान अध्यापिका से बहस करने लगे।

प्रधानाध्यापिका रेनू त्रिपाठी के अनुसार शिक्षामित्र रामकिशोर और अध्यापक वीरेन्द्र मिश्रा दिन भर विद्यालय में खाली बैठेना चाहते हैं, पर बच्चों को कक्षा वार प्रतिदिन पढ़ाना उन्हें मंजूर नहीं । शिक्षामित्र गांव की लोकल होने का प्रभाव डालते हैं और देख लेने की धमकी देते हैं।
एक ओर जहां पूरे प्रदेश में बेसिक शिक्षा परिषद के अध्यापकों के ऊपर मिशन प्रेरणा के तहत विद्यार्थियों के लिए निर्धारित प्रेरणा लक्ष्य को प्राप्त करने का दबाव है वहीं यदि अनुशासनहीनता इसी तरह बरकरार रही और सहायक अध्यापक और शिक्षा मित्र, प्रधान अध्यापकों की बातों को नहीं मानेंगे तो यह लक्ष्य प्राप्त करना कैसे संभव है।
अक्सर अपने रसूक के माध्यम से अपनी ड्यूटी स्कूल के बाहर लगवा कर स्कूल ना आने का बहाना खोजते विरेंद्र मिश्रा ,विद्यालय समय अवधि में खाली बैठना तो पसंद करते हैं पर गिनती की संख्या में बच्चों को ज्ञान देने में विश्वास नहीं करते।
प्रधानाध्यापक रेनू त्रिपाठी ने अपने खुद के परिश्रम के द्वारा विद्यालयों में कई नए निर्माण कार्य कराए हैं साफ-सफाई और अनुशासन का ध्यान रखने वाली रेनू त्रिपाठी को रोज-रोज अपने आदेशों की अवहेलना तथा अनुशासन के इस प्रकार लड़ाई झगड़ा पसंद नहीं आया और कक्षा में जाकर पढ़ाते की बात पर बहस ज्यादा करते हुए किसी भी स्थिती में सहायक अध्यापक विरेंद्र मिश्रा बच्चों को पढ़ाने को राजी नहीं थे। वही कुछ दिन पहले शिक्षा मित्र राम किशोर ने पढ़ाने के मुद्दे पर रेनू त्रिपाठी को एससीएसटीएक्ट में फसाने की दी।
रेनू त्रिपाठी ने जब कहा कि आप लोग स्वयं अपना टाइम टेबल बना ले और विद्यालय अवधि में विद्यालय में खाली ना बैठे ताकि बच्चों का नुकसान होने से रोका जा सके इतना कहना भी विवाद का कारण बना दिया गया।
सालभर कोरोना की वजय से बच्चों की पढ़ाई पीछे हो गई है जब तक सभी शिक्षक जिम्मेदारी मिलकर नही समझेंगे तब तक शिक्षा के स्तर को सुधारने के लिए प्रयास मात्र एक शिक्षक के बस की बात नहीं है परंतु यह सब सुनना सहायक अध्यापक वीरेंद्र मिश्रा को गवारा नहीं था क्योंकि उन्हें मोटी तनख्वाह तो चाहिए पर बच्चों के प्रति समर्पण के मामले में बच्चों के स्तर सुधारने में उनकी कोई रुचि नहींहै,उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता कि बच्चे विद्यालय आए और दिन भर इधर-उधर घूमे या फिर एक ही अध्यापक दिन भर एक कक्षा को बढ़ाता रहे।
सहायक अध्यापक अक्सर प्रधानाध्यापक के आदेशों की अवहेलना करते रहे और हद तो तब हो गई जब बहस करते हुए सहायक अध्यापक में प्रधानाध्यापक को जहर खा कर मर जाने तक को कह दिया और हर प्रकार के मानसिक प्रताड़ना को प्रधान अध्यापिका को देते हैं।
वाकई बेसिक शिक्षा परिषद के स्कूलों की स्थिति और गुणवत्ता कैसे सुधारी जा सकती हैं जबकि सहायक अध्यापक प्रधानाध्यापक की बातों को मानने को तैयार नहीं विभिन्न प्रकार की कागजी कार्यवाही तथा मीटिंग करते हुए आदेशों के अनुपालन के लिए कटिबद्ध प्रधानाध्यापक अपने सहायक अध्यापकों को अनुशासन से विद्यालय में पढ़ाने के लिए यदि प्रेरित करता है तो उसे कभी एससी एसटी एक्ट में फंसाने तो कभी मर जाने की धमकी दी जाती है।
सहायक अध्यापक वीरेंद्र मिश्रा द्वारा दिए गए इस प्रकार के मानसिक प्रताड़ना से क्या विद्यालय का माहौल कभी खुशहाल रह पाएगा क्या वाकई बच्चों की गुणवत्ता पूर्ण शिक्षा हेतु बने प्रेणना लक्ष्य को प्राप्त करने का कदम सार्थक सिद्ध हो पाएगा।
खंड शिक्षा अधिकारी मोहनलालगंज धर्मेंद्र प्रसाद से कई बार लिखित शिकायत की गई पर उन्होंने ध्यान नहीं दिया। अब पूरे मामले को संज्ञान में लेते हुए बीएसए लखनऊ को इस मामले में तत्काल प्रभाव से वीरेंद्र मिश्रा के ऊपर अनुशासनात्मक कार्यवाही करते हुए उन्हें निलंबित कर देना चाहिए ताकि अन्य विद्यालयों को इस प्रकार की कार्यवाही से सीख मिल सके और रोज होने वाले आप उसी को रात को रोका जा सके और विद्यालयों में अनुशासन का पालन हो सके।
बेसिक शिक्षा परिषद के विद्यालयों में आदेशों तथा उनके अनुपालन में प्रधानाध्यापकों को आ रही परेशानियों का एक जीवंत उदाहरण मोहनलालगंज के प्राथमिक विद्यालय कुशभिटा में घटित हुआ।
यदि समय सेअधिकारियों द्वारा कार्रवाई कर दी जाए तो शिक्षकों को मानसिक प्रताड़ना से बचाया जा सकता है।

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