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रामानंद संप्रदाय के प्रधान आचार्य स्वामी रामनरेशाचार्य जी महाराज दो दिवसीय प्रवास पर होंगे आरा में

रामानंद संप्रदाय के प्रधान आचार्य स्वामी रामनरेशाचार्य जी महाराज दो दिवसीय प्रवास पर आरा पधार रहे हैं. वे 11 और 12 दिसम्बर को जिला मुख्यालय स्थित आरा क्लब परिसर में श्रद्धालुओं को संबोधित करेंगे. स्वामीजी के सत्संग की तैयारियां अंतिम चरण में है. जगदगुरु रामानंदाचार्य पद प्रतिष्ठित स्वामी रामनरेशाचार्य रामानंदी वैष्णवों की मूल आचार्यपीठ श्रीमठ, पंचगंगा घाट, काशी के वर्तमान पीठाधीश्वर हैं. इस पीठ को सगुण और निर्गुण रामभक्ति परंपरा और रामानंद संप्रदाय का मूल गादी होने का गौरव प्राप्त है. रामानंद संप्रदाय को वैरागी और रामावत संप्रदाय भी कहा जाता है. श्रीवैष्णव संप्रदाय में यह साधु, संतों, श्रीमहंतों की सबसे बड़ी जमात है. देश में सबसे ज्यादा व्यवस्थित मठ, आश्रम और साधु-संत इसी संप्रदाय के हैं. 

क्या-क्या है कार्यक्रम
रामानंदाचार्य आध्यात्मिक मंडल, आरा के संयोजक सतेन्द्र पांडेय के मुताबिक स्वामीजी महाराज विगत एक सप्ताह से श्रीरामभाव प्रसार यात्रा के तहत बिहार प्रवास पर हैं. वे पटना से सड़क मार्ग द्वारा 11 तारीख की सुबह आरा पहुंचेगें. खगौल, बिहटा, कोईलवर और कायमनगर में स्वागत की तैयारी भक्तों ने की है. शाम में आरा क्लब परिसर में उनका आध्यात्मिक सत्संग शाम चार बजे से होगा. दूसरे दिन भी शाम चार बजे से 6 बजे तक उसी स्थल पर सत्संग का लाभ श्रद्धालु ले पाएंगे. मंडल की ओर से श्रद्धालुओं के लिए प्रसाद (भंडारे) की व्यवस्था भी की गयी है. महाराजा हाता स्थित राम मोटर्स की गली में स्वामीजी का प्रवास रहेगा. जहां उनसे दीक्षित भक्त सुबह में गुरु पूजन और आरती करेंगे. दोपहर तक दर्शन-पूजन का कार्यक्रम चलेगा. कार्यक्रम के प्रचार-प्रसार के लिए शहर में होर्डिंग और बैनर लगाये जा चुके हैं.   रामालय ट्रस्ट के संयोजक हैं रामनरेशाचार्य
जगदगुरु रामानंदाचार्य स्वामी रामनरेशाचार्य अयोध्या में श्रीरामजन्मभूमि पर भव्य राममंदिर बनाने के लिए पूर्व प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हराव की पहल पर गठित रामालय ट्रस्ट के संयोजक रहे हैं. उस ट्रस्ट में द्वारका पीठ और ज्योतिष पीठ के जगदगुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरुपानंद सरस्वती और श्रृंगेरी पीठ के जगदगुरु शंकराचार्य स्वामी भारतीतीर्थ जी भी थे. स्वामी रामनरेशाचार्य जी ने राममंदिर आंदोलन को लोकव्यापी बनाने के लिए पूरे भारत की यात्रा की थी. रामजन्मभूमि मुक्ति आंदोलन से श्रीमठ का जुड़ाव आरंभ से ही रहा है. जब रामजन्मभूमि न्यास पहली बार गठित हुआ तो उसके अध्यक्ष जगदगुरु शिवरामाचार्य थे, जो श्रीमठ के तत्कालीन पीठाधीश्वर थे. उनके निधन के बाद ही स्वामी रामनरेशाचार्य जी को रामभक्ति परंपरा की मूलपीठ श्रीमठ, पंचगंगा घाट, काशी पर प्रतिष्ठित किया गया.
राममंदिर में हो सबकी सहभागिता
रामानंदाचार्य स्वामी रामनरेशाचार्य ने साफ किया है कि अयोध्या में राममंदिर के निर्माण में सबकी सहभागिता होनी चाहिए. ऐसा नहीं हो कि हम अहंकारवश ऐसा समझ बैठें कि मेरे कारण ही यह निर्णय आया है. ऐसा भी न हो कि प्रभु श्रीराम की परम पावन आविर्भावस्थली को मात्र एक पर्यटन स्थल में विकसित कर अर्थोपार्जन का साधन बना दिया जाए, और उसका संबंध आध्यात्मिकता से कोसों दूर हो जाए. उन्होंने कहा कि श्रीराम जन्मभूमि पर सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय का जैसा स्वागत भारत भर में हुआ है. मंदिर निर्माण में उस भावना का आदर करते हुए सबकी सहभागिता सुनिश्चित की जानी चाहिए.

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